सोचना तो हम इनसानों की फितरत है। शोधों से भी पता चलता है कि रोजाना औसत 60,000 विचार आते हैं व्यक्ति के मन में। तो फिर ज्यादा सोचना यानी Overthinker होना, क्या इतना बड़ा मसला है कि इस पर बात होनी चााहिए! कुछ लोगों को यह फिजूल की बात लग सकती है। लेकिन इस पर बात करना जरूरी है, क्योंकि यह कई तरीकों से आपको नुकसान पहुंचा सकता है।

ओवरथिंकिंग क्या है
किसी चीज के बारे में बहुत अधिक या बहुत लंबे समय तक सोचना ही ओवरथिंकिंग (Overthinking) की निशानी है। कोई भी निर्णय लेने या किसी भी स्थिति से निपटने से पहले उसके बारे में सोचना जरूरी है और यह स्वाभाविक भी है। लेकिन जब आप किसी समस्या या कोई जरूरत के बारे में ज्यादा सोचने लगते हैं, तो यह मानसिक और शारीरिक सेहत पर असर डालने लगता है। आप फिर अन्य कामें में ध्यान नहीं लगा पाते। ऐसे लोग अकसर उन सभी चीजों के बारे में चिंता करने लगते हैं, जो गलत हो सकती हैं।
अहम सवाल यह है कि दिमाग की आभासी दुनिया में उठने वाले विचार, वाकई क्या इतने शक्तिशाली होते हैं कि हमारे पूरे व्यक्तित्व को बदल दें। इस पर विश्वास तो नहीं होता, लेकिन यह बात सच्च है कि ज्यादा सोचना हमारी सोच से भी कहीं अधिक खतरनाक है।
60 हजार विचारों का झमेला
क्या अपको अंदाजा है कि एक दिन में औसतन 6 से 7 हजार विचार आप अपने दिमाग में बना लेते हैं या इससे ज्यादा भी। एक शोध का निष्कर्ष बताता है कि एक व्यक्ति के मन में रोजाना करीब 60 हजार विचार आते हैं, जिनमें से 75 फीसदी विचार नकारात्मक होते हैं और 95 फीसदी बार-बार दोहराए जाने बाले होते हैं। मनोविषेषज्ञों की मानें तो नकारात्मक और बार-बार दोहराए जाने वाले विचारों की यह निरंतर बौछार हमारी मानसिक सेहत, खुशी और जीवन की समग्र गुणवत्ता को नकारात्मक रुप से प्रभावित कर सकती है।
अतिविचारक होने के ये हैं खतरे
हम अकसर अतीत में हुई गलतियों को और भविष्य में होने वाले संभावित हादसे के बारे में इतना सोचने लगते हैं कि वो सच में हो जाता है। इसका बेहतर उदाहरण आपको रोड ट्रिप में मिल सकता है कि पहाड़ी एरिया में गाड़ी चलाता ड्राइवर जब खाई से बचने के लिए खाई की तरफ देखना शुरू करता है तो गाड़ी अपने आप ही उस किनारे पहुंचने लगती है। दरअसल, हमारा दिमाग हमारे शरीर को सुरक्षित रखने के लिए संभावित खतरों, नकारात्मक बातों या हमारे डर को सबसे आगे रखता है। ऐसे में जब हम ज्यादा सोचते रहते हैं, तो मन में नकारात्मकता बढ़ने लगती है, जिसकी अति घबराहट, एंग्जायटी और डिप्रेशन तक का रूप ले लेती है। जर्नल ऑफ एबनॉर्मल साइकोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में भी बताया गया है कि अपनी कमियों, गलतियों और समस्याओं पर विचार करने से मानसिक समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। यह आपको समाधान खोजने के बजाय समस्या पर ही ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रेरित करने लगता है।
वहीं ह्यूस्टन मेथोडिस्ट में प्रोफेशनल वेलनेस के निदेसक डॉ. जे. क्रिस्टोफर का कहना है कि हमारा मस्तिष्क एक ऐसा प्रोसेसर है, जो रोजाना 35,000 से अधिक बार सचेत और अवचेतन निर्णय लेता है। लेकिन अगर हम हर चीज पर जरूरत से ज्यादा विश्लेषण करने में फंसेंगे, तो इसका नुकसान भी हो सकता है। इस तरह ज्यादा सोचने के और भी कई खतरे हैं-
- मानसिक बीमारी की आशंका बढ़ जाती है।
- यह समस्या समाधान में बाधा डालता है।
- यह आपकी नींद मे खलल डाल सकता है। मतलब, यदि आप बहुत अधिक सोचने वाले व्यक्ति हैं, तो जब तक आपका दिमाग बंद नहीं होता, आप सो नहीं सकते।
- भूख की कमी हो सकती है।
- धीरे-धीरे आत्मविश्वास में कमी हो सकती है।
- यही नहीं सामाजिक और व्यक्तिगत संबंधों में भी समस्याएं आने लगती हैं।
कैसे सोचता है एक ओवरथिंकर का दिमाग
- अत्यधिक सोचने वाले का दिमाग एक घूमते हुए पहिए की तरह होता है, जो लगातार विचारों, चिंताओं और ख्यालों के साथ घूमता रहता है।
- वे धिपे हूए अर्थ खोजने में विशेषज्ञ होते हैं, जिनमें जासूसों की तरह पंक्तियों के बीच की बातें भी पढ़ने का हुनर होता है।
- क्या होगा अगर? इस एक वाक्य से, वें अपने दिमाग में हर संभावना और परिणाम की खोज करते हुए एक पूरी वैकल्पिक वास्ताविकता भी बना सकते हैं।
- वे परफेक्शनिज्म के साक्षात प्रतिरुप होते है। जो हर काम में सर्वोत्तम के लिए प्रयास करते हैं, लेकिन दोषहीनता की खोज में अकसर वे फंस जाते हैं।
- इनमें सामान्य परिस्थितियों में भी भयावह परिणामों की कल्पना करने की अनुठी प्रतिभा होती है।
- इनमें पिछली गलतियों पर सोचने और छूटे अवसरों पर पछताने की अनोखी क्षमता होती है।
- ये अपने विचारों के तले दबे हो सकते हैं, जिससे मानसिक थकान हो सकती है।
- ऐसे लोगों में भावनाओं की गहरी समझ होती है।
स्वास्थ्य आपके दिमाग से शुरू होता है
मनोविशेषज्ञों की मानें तो 99 फीसदी नुकसान आपके दिमाग में उठ रहे आपके विचारों के कारण होती है। मतलब, जिस तरह से किसी मुद्दे के बारे में सोचते हैं, वही समस्या है। इस पर काबू पाने के लिए सबसे पहले ध्यान और योग को अपने जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा। ये मन को शांति देते है और सोचने की आदत पर नियंत्रण आता है।
- हर महीने कुध नया पढ़ने की कोशिश करें। हर 6 महीने में कुछ नया सीखने की कोशिश करें। जब हम कोई नया काम कर रहे होते हैं, तो हमारा पूरा ध्यान उस काम को ठीक से करने में केंद्रित रहता है।
- अपनी दिन भर की बातें या मन में उमड़ते ख्यालों को लिखना शुरू करें। शोधों में पाया गया है कि कागज पर लिखे शब्द मन हल्का करने में फायदेमंद होते हैं।
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