अदाणी समूह (Adani Group) और उसके फांउडर चेयरमैन गौतम अदाणी (Gautam Adani) की बात करेंगे कि गौतम अदाणी ने कैसे अरबों डॉलर का साम्राज्य बनाया और इतने बड़े उद्योगपति का फायदा या नुकसान हमें कैसे प्रभावित करता है या देश के आर्थिक हितों पर क्या असर पड़ता है।

24 जून 1962 को शांतिलाल अदाणी और शांता बेन के घर गौतम अदाणी का जन्म हुआ। परिवार में प्लास्टिक प्रेसिंग का कारोबार था। साल 1978 में एक दिन स्कूल में पढ़ रहे 16 वर्ष के गौतम अदाणी ने टिकट लेकर मुंबई की ट्रेन पकड़ ली। गौतम अदाणी के कजन प्रकाश भाई देसाई ने उन्हें महिंद्रा बर्दरस में काम दिलबाया। उन्हेंने हीरे छाटने का काम सिखा। 3 साल बाद उन्होंने ज़ाबेरि बाजार में खुद का डायमंड ट्रेडिंग ब्रोकरेज का काम शुरू किया। उन्हें पहली कामज़बी तब मिली जब एक जापानी खरीदार को हीरे के व्यपार में मद्द की और कमिशन कमाया 10 हजार रूपये। उस दौर में यह बड़ी रकम होती थी। अगले साल 1982 में गौतम अदाणी के बड़े भाई ने एक प्लास्टिक मैनिफेक्चरिंग की कंपनी खरीदी और गौतम अदाणी को मद्द के बुला लिया। गौतम अडाणी वापस अपने घर गुजरात आए और परिवार के बिज़नेस में सहायता करने लगे। उस समय रॉ मटेरियल की किल्लत छोटे प्लास्टिक फैक्ट्रियों को परेशान कर रही थी। 1985 में राजीव गांधी की सरकार ने इंपोर्ट और एक्सपोर्ट पर कुछ छूट दी। इसी समय अदाणी ने रॉ मटेरियल इंपोर्ट करना शुरू कर दिया । उन्हों ने न सिर्फ अपने लिए रॉ मटेरियल इंपोर्ट किया बल्कि आसपास की कई फैक्ट्रियों को भी रॉ मटेरियल सप्लाई करना शुरू कर दिया।
कुछ साल बढ़िया प्रॉफिट कमाया, कितना कमाया इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब अदाणी एक्सपोर्ट्स का IPO निकला तो वह 25 गुना ओवर सब्सक्राइब हुआ। इस का मतलब है कि शेयर मार्केट में जितने शेयर्स उतारे गए, उससे 25 गुना ज्यादा लोग इस कंपनी के शेयर खरीदने के इच्छुक थे। यह उस दौर की बात है जब IPO के लिए ऑनलाइन सिस्टम नहीं होता था और न ही इतने लोग स्टॉक मार्केट में रुचि लेते थे और इसकी जानकारी रखते थे।
1991 में एक टर्निंग पॉइंट आया। नरसिम्हा राव की सरकार बनी और वित्त मंत्री बने डॉ. मनमोहन सिंह। डॉ. मनमोहन सिंह ने उदारीकरण की नीति अपनायी। भारत को दुनिया के बाजार से जोड़ दिया। इसका फायदा देश के साथ अदाणी को भी हुआ। एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का बिजनेस और तेजी से बढ़ने लगा और तेजी पकड़ने लगा अदाणी एक्सपोर्ट्स। यह कम्पनी अब एक बड़ी कम्पनी बन गई थी। 1988 आते-आते अदाणी ने कोयले का व्यापार शुरू किया। इसमें भी उनको फायदा हुआ। आइए उन चीजों को समझते है जो अदाणी साम्राज्य की नीव बनी।

अदाणी साम्राज्य की नीव
1991 का उदारीकरण हो चुका था। भारत के बाजार दुनिया के लिए खुल चुके थे। अब आते है गुजरात, अपको बता दें कि गुजरात का समुद्र तट भारत में सबसे लंबा है और उस वक्त गुजरात के मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल इसी समुद्र तट को डेवलप करना चाहते थे, जिससे धंधा और रोजगार दोनों बढ़े। कैरगिल (Cargill) नाम की एक अमेरिकी कम्पनी को मौका मिला। कच्छ के इलाके में एक जेटी बनाने का आईडिया था, जिससे समुद्र से नमक निकाला जा सके। जेटी का मतलब एक छोटे बहुत छोटे साइज का पोर्ट जहां नाव से सामान लोड और अनलोड किया जाता है। इसके लिए एक जेटी को चुना गया, यहां तक सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन फिर यह प्रोजेक्ट अधूरे में लटक गया। दरसल हुआ यह कि अमेरिकी कम्पनी को बाद में प्लान कुछ जचा नहीं। अदाणी इसी मौके की फिराक में थे। उन्हें पहले से अंदाजा था कि अमेरिकी कम्पनी यह काम नहीं कर पाएगी। अब तक धीरू भाई अंबानी जामनगर को एक पोर्ट टाउन में कन्वर्ट कर चुके थे तो एक सक्सेस मॉडल सामने था। उसी तरह अदाणी भी इस जेटी को एक प्रॉफिटेबल पोर्ट में बदलना चाहते थे। केशुभाई पटेल ने जाते-जाते साल 2001 में जेटी के बदले अदाणी को पोर्ट बनाने की परमिशन दे दी। अदाणी को 30 साल की लीज मिली। पोर्ट बना और आज यह पोर्ट देश का सबसे बड़ा प्राइवेट पोर्ट है। इसको मुद्रा पोर्ट कहते हैं।
2007 में अदाणी ग्रुप की एक कम्पनी मुद्रा पोर्ट एंड स्पेशल इकोनॉमिक जोन लिमिटेड का IPO निकला जो 116 गुना ओवर सब्सक्राइब हुआ। बाद में इस कम्पनी का नाम अदाणी पोर्टस पड़ गया और इसके तहत मुद्रा के अलावा और कई पोर्टस की जिम्मेदारी आ गई। मौजूदा समय में अदाणी पोर्टस भारत में कुल 13 बंदरगाहों (पोर्ट्स) को मैनेज करती है। जिसमें पश्चिम बंगाल का हल्दिया पोर्ट, केरल का बलिंजम पोर्ट, तमिलनाडु का कट्टूपल्ली पोर्ट इसमें शामिल है। अदाणी पोर्टस अदाणी ब्रांड की सबसे बड़ी पहचान है, हालांकि किसी आदाणी ने अपने व्यापार को दूसरे सेक्टर्स में भी फैलाया।साल 1999 में अदानी ग्रुप ने सिंगापुर की विलमार इंटरनेशनल के साथ पार्टनरशिप में कम्पनी बनायी अदाणी विलमार लिमिटेड। फार्चुन तेल इसी अदाणी विलमार लिमिटेड का प्रोडक्ट है।

अदाणी ग्रुप के विस्तार का दौर
2007 तक गौतम अदाणी देश के 10वें सबसे अमीर इंसान बन चुके थे। उनकी जेब में पैसा था। क्रेडिबिलिटी थी और उनके साथ इन्वेस्टर्स का भरोसा था। एक कंपनी को बड़ा बनाने के लिए यह तीनों चीजें जरूरी ईधन है। 2009 में शुरुआत हुई अदाणी पावर की, अदाणी के पास मुद्रा में जमीन थी। जहां उनका पहला पावर प्लांट लगा और वह पहले से ही देश के सबसे बड़े कोल इंपोर्टर थे तो पावर जनरेशन का काम उनके लिए आसान हो गया। साल 2014 आते-आते अदाणी पावर भारत की सबसे बड़ी प्राइवेट बिजली उत्पादक कम्पनी बन गयी। इसके साथ अदाणी ग्रुप को भारत में कई सारे एयरपोर्टस को मैनेज करने का काम मिल गया, जैसे कि मुंबई और दिल्ली के एयरपोर्ट।
एयरपोर्ट के कंट्रोल को लेकर के कई बार अदाणी समूह पर आरोप भी लगे। विपक्ष ने कहा कि सरकार से उनकी साठ-गांठ है। उन्हें अतिरिक्त फायदा मिला है लेकिन यह बात कभी भी कोर्ट से प्रमाणित नहीं हो सकी। बाद के दौर में अदाणी ग्रुप ने ग्रीन एनर्जी में भी इन्वेस्ट किया। 2015-16 में नरेंद्र मोदी सरकार ने 2022 तक बड़े हाइड्रो प्रोजेक्ट से इतर 175 गीगा वाट रिन्यूएबल एनर्जी प्रोड्यूस करने का टारगेट रखा।100 गीगा वाट सोलर एनर्जी का टारगेट मार्च 2023 तक रखा गया था। यह टारगेट्स अगर आप देखें तो उस समय के लिहाज से बहुत एंबिशियस थे लेकिन इन लक्ष्यों ने अदाणी को उनकी ग्रीन एनर्जी प्लांस के लिए फ्यूल दिया। अदाणी ग्रुप के कई और देशों में भी प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
कितना कर्ज है अदाणी ग्रुप पर
साल 2023-24 तक अदाणी ग्रुप ने करीब 2,41,000 करोड़ का कर्ज लिया है। यह दो तरह के लोन है-
1. लॉन्ग टर्म लोन्स
- वो लोन जिसे वापस करने की अवधि 1 साल से ज्यादा होती हैं।
- ऐसे लोन अक्सर कंपनियां बिज़नेस बढ़ाने या किसी नए प्रोजेक्ट को शुरू करने के लिए लेती हैं।
अदाणी ग्रुप के कुल कर्ज़ का 92% यानी 2,22,000 करोड़ लॉन्ग टर्म लोन के फॉर्म में लिया गया था। सबसे ज्यादा पैसा अदाणी ग्रुप ने भारतीय बैंकों से जुटाया है। तकरीबन 75,800 करोड़ रूपये, जिसमें सबसे ज्यादा उधार स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से मिला है। इसके अलावा एक्सेस बैंक, ICICI, पंजाब नेशनल बैंक, YES बैंक भी बड़े-बड़े लोन अमांउट समय-समय पर अदाणी ग्रुप को सैंक्शन किए हैं। इसके अलावा विदेशी बैंकों ने भी करीब 61 हजार करोड़ लॉन्ग टर्म लोन के फॉर्म में अदाणी ग्रुप को दिए हैं। अदाणी ग्रुप ने काफी बड़ा अमाउंट कैपिटल मार्केट से भी उठाया है। कैपिल मार्केट से पैसा उठाने के लिए बॉन्ड्स इशू किए जाते हैं। बॉन्ड में पैसा भुगतान की तारीख लिखी होती है। बॉन्ड खरीदने वाले को मूल के साथ निर्धारित ब्याज भी दिया जाता है। CNBC की एक रिपोर्ट है। उसके मुताबिक अदाणी ग्रुप ने भारतीय कैपिटल मार्केट से करीब 12 हजार करोड़ जुटाए हैं, जबकि विदेशी कैपिटल मार्केट से 69 हजार करोड़ जुटाए हैं।
2. वर्किंग कैपिटल लोन्स
- वो लोग जिसे पेबैक करने की अवधि 1 साल के कम होती हैं।
- इस कर्ज़ का इस्तेमाल अक्सर कंपनियां अपने रोजमर्रा के काम, जैसे एम्प्लॉई को सैलरी देने या रेंट चुकाने के लिए करती हैं।
- आमदनी होते ही इस कर्ज़ को चुका देती हैं।
अदाणी ग्रुप के केस में कुल कर्ज़ का 8% यानी करीब 19 हज़ार करोड़ रुपये का वर्किंग कैपिटल लोन के फॉर्म में है। वर्किंग कैपिटल लोन को शॉर्ट टर्म लोन भी कहते है। अदाणी ग्रुप द्वारा वर्किंग कौपिटल लोन रूप में करीब 12,223 करोड़ रूपये भारतीय बैंकों से जुटाए गए हैं।
कुल मिलाकर बात यह कि अदाणी ने करीब 36 प्रतिशत पैसा भारतीय बैंकों से कर्ज लिया है। अगस्त 2024 में CNBC की छपी एक रिपोर्ट मुताबिक अभी तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अडानी ग्रुप को करीब 27 हजार करोड़ का कर्ज दिया है। इसके अलावा करीब 9200 करोड़ का कर्ज एक्सेस बैंक ने दिया है, PNB ने भी अभी तक अरीब 7 हजार करोड़ का कर्ज दिया है। अदाणी को अभी तक मिले कुल कर्ज में लगातार भारतीय बैंकों की हिस्सेदारी बढ़ रही है। बैंकों के अलावा अदाणी ग्रुप ने LIC से भी 5790 करोड़ रूपये का कर्ज लिया है।
अदाणी ग्रुप का मुनाफा
तमाम कर्ज़ों के बावजूद इन्वेस्टर्स के लिए अदानी ग्रुप भरोसे का सौदा है। अबू धाबी और जापान के इन्वेस्टर्स हाल में अमेरिका में जो अदाणी के खिलाफ ख़बरें चल रही है, उसके बाद भी अदाणी ग्रुप पर दाव लगाने को तैयार है। कितना है अदाणी ग्रुप का प्रॉफिट?
कंपनियों का हाल जानने के लिए अक्सर दो तरीके के प्रॉफिट कैलकुलेट किए जाते हैं-
पहला तरीका है ऑपरेटिंग प्रॉफिट, इसका सिंपल कैलकुलेशन है कि साल भर में कितना खर्च हुआ और कितने की सेल हुई। साल 2013 में अदाणी ग्रुप की कंपनियों का कुल ऑपरेटिंग प्रॉफिट करीब 2.5 हजार करोड़ था। 2022 में बढ़ते हुए ये करीब 14.5 हजार करोड़ हो गया और पिछले फाइनेंशियल ईयर में यानी 2023-24 में यह बढ़कर के करीब 83 हजार करोड़ हो गया। एक दशक में ऑपरेट प्रॉफिट 33 गुना बढ़ गया।
दूसरा तरीका है नेट प्रॉफिट, इसमें ऑपरेटिंग प्रॉफिट से टैक्स, कर्ज की EMI जैसे खर्च घटाने के बाद जो असल बचत निकलती है। उसे नेट प्रॉफिट बोलते हैं यानी शुद्ध मुनाफा। साल 2009 में अदाणी ग्रुप का नेट प्रॉफिट करीब 500 करोड़ था, जो 2024 में 30 हजार करोड़ के पार हो गया है यानी सिर्फ 15 साल में नेट प्रॉफिट 60 गुना बढ़ गया। अब शेयर धारकों का क्या उसके लिए समझते हैं अदाणी ग्रुप के शेयर्स का हाल।
अदाणी ग्रुप के शेयर्स
अदाणी ग्रुप की बड़ी कंपनियों पर नजर डालते हैं। अदाणी ग्रुप की पेरेंट कंपनी अदाणी एंटरप्राइजेस को जनवरी 1999 में स्टॉक मार्केट में लिस्ट किया गया था, तब इसके एक शेयर का दाम 6 रूपये था। 29 नवंबर 2024 में इसके शेयर की वैल्यू 2409 है यानी 25 साल में 39718% की बढ़त। अदाणी ग्रुप की एक और कंपनी है अदाणी पोर्ट्स, 2007 में ये कंपनी स्टॉक मार्केट में लिस्ट हुई। महज 17 सालों में इसके शेयर का भाव 531% बढ़ गया। अगली कंपनी का उदाहरण तो और भी इंटरेस्टिंग है, अदाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड यह कंपनी जून 2018 में लिस्ट हुई है अभी 6 साल ही हुए है और सिर्फ 6 साल में इसके शेयर करीब 3967% बढ़ गए। 29 रूपये का शेयर आज 1197 रूपये है, हलांकि इसकी 1800 से ज्यादा थी। हाल फिलहाल में ये थोड़ा गिर गया, जब हिंडन बर्ग की दो रिपोर्टस में अदाणी पर मैनिपुलेशन इत्यादि के आरोप लगाए गए और अमेरिका वाला मामला तो अभी चल ही रहा है। कंपनी के शेयर तुलनात्मक रूप से अभी भी मजबूत हैं। इस मजबूती के पिछे कारण क्या है?
ऊपर हमने डिस्कस किया की अदाणी ग्रुप पर बहुत सारा कर्ज है लेकिन कर्ज से कौन डरता है, हमारे और आप जैसे लोग। कैपिटलिज्म में कर्ज कोई बुरी चीज नहीं मानी जाती। कर्ज असल में एक टूल है, अपने व्यापार को फैलाने का कर्ज से इन्वेस्टर्स का भरोसा भी कम नहीं होता। बशर्ते कंपनी कर्ज चुकाने में सज्ञम हो। यह हमें कैसे पता कि अदाणी कर्ज चुकाने में सक्षम है। दरअसल आप जब भी कर्ज के लिए आवेदन करते हैं। तब सबसे पहले बैंक आपकी आमदनी और आपकी संपत्ति के बारे में जानकारी इकट्ठा करता है। स्वाभाविक है कि बिना आमदनी के कर्ज तो चुकाया नहीं जा सकता। वैसे ही कंपनियों के साथ भी किया जाता है। इसके लिए कंपनी के प्रॉफिट के मुकाबले कंपनी पर कितना कर्ज है। इसे कैलकुलेट किया जाता है, इसे डेट टू एबिटा रेशियो कहते हैं। किसी कंपनी के लिए यह रेशियो जितना कम हो उतना अच्छा होता है। पिछले 5 साल में अदाणी ग्रुप की कंपनियों का डेट टू एबिटा रेशियो लगातार घटा है।
बिज़नेस के जरिये कूटनीति
अदाणी ग्रुप का तमाम हिसाब किताब समझने के बाद अब समझते हैं कि अदाणी ग्रुप के गिरने या चढ़ने का भारत पर क्या असर पड़ सकता है। इतने बड़े स्तर के किसी भी उद्योगपति की चाल देश को कैसे प्रभावित करती है। कूटनीति के चश्मे से देखें तो देशों के बीच दो तरह की कूटनीति का इस्तेमाल होता है। एक वह जो आप अक्सर हेडलाइंस में देखते हैं। जब दो राष्ट्र अध्यक्ष या विदेश मंत्री या सचिव स्तर की वार्ता उनके बीच होती है। लेकिन डिप्लोमेसी का एक दूसरा तरीका भी है, इसमें काम आते हैं बिज़नेस घराने। उदारण के लिए एप्पल, कोका कोला, Mcdonald's और जनरल इलेक्ट्रिक यह तमाम कंपनियां अमेरिका की आर्थिक कूटनीति का अहम हिस्सा है। इन कंपनियों से क्या असर पड़ता है।
पहला व्यापार सम्बंध, अमेरिकी कंपनियां अन्य देशों के साथ व्यापारिक सम्बंधों को मजबूत करती हैं। जिससे अमेरिका का राजनीतिक भौकाल बढ़ता है। इन कंपनियों के जरिए अमेरिकी जीवनशैली, व्यापारिक आदतें और कल्चरल वैल्यूज को दुनिया भर में फैलाया जाता है। आमतौर पर यह व्यापार में ही मद्द करती हैं।
दूसरा सांस्कृतिक प्रभाव, कंपनी के जो ब्रांड्स हैं। जैसे कि CocaCola, Nike, STARBUCKS इनके जरिए अमेरिका अपनी संस्कृति को दुनिया भर में फैलाता है। इसी तरह अमेरिकी मीडिया कंपनियों जैसे कि Disney, Netflix पूरी दुनिया में अमेरिका के कल्चरल स्टैंडर्स और वैल्यूज का प्रचार करती हैं।
तीसरा निर्भरता बनाना, जब कोई देश की इकॉनमी अमेरिकी कंपनियों पर निर्भर हो जाती है तो यह अमेरिका को राजनीतिक दबाव बनाने का एक टूल दे देता है।
अमेरिका के उदाहरण से हम अदाणी ग्रुप या किसी और भी भारतीय कंपनी की वैल्यू को समझ सकते हैं। भारत की कई कंपनियां चाहे वो सरकारी हो या प्राइवेट जो दूसरे देशों में इन्वस्ट करती हैं, मिसाल के तौर पर NTPC है जो भारत की सरकारी बिजली उत्पादन कंपनी है। ये बांग्लादेश में 1320 मेगावाट का पावर प्लांट बना रही है। बिजली उत्पादन एक स्ट्रेटजिक सेक्टर है। इससे दूसरे देश में हमारा प्रभाव बढ़ता है। अदाणी ग्रुप की बात कर रहे हैं वरना यह बात टाटा या अंबानी या किसी भी बड़े कॉरपोरेट ग्रुप के लिए कही जा सकती है।
विदेशों में अदाणी ग्रुप के कई प्रोजेक्ट्स और इन्वेस्टमेंट हैं जैसे कि ऑस्ट्रेलिया में कोयले की खदानें, इजराइल का हाईफा पोर्ट, श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में भी अदाणी पोर्ट्स की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है। ये पोर्ट हिंद महासागर में एक बहुत ही स्ट्रेटजिक लोकेशन पर स्थित है। इसके अलावा अदाणी ग्रुप ने नेपाल, भूटान, केन्या, फिलीपींस में बिजली उत्पादन की डील्स भी की हुई है। ये सारे प्रोजेक्ट्स अदाणी ग्रुप के लिए तो फायदे का सौदा है ही, लेकिन भारत की जिओ पॉलिटिकल पकड़ को बढ़ाने में भी मद्द करते हैं। कारोबार और राजनीति दोनों का बड़ा ताल्लुक अर्थशास्त्र से है। इसलिए दोनों अक्सर एक दूसरे में सने और लिपटे रहते हैं और इसलिए कभी-कभी आरोप लगते हैं। भारत की विपक्षी पार्टियां अक्सर कहती हैं कि सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी से नजदीकी की वजह से गौतम अदाणी तमाम मुश्किलों से बच निकतले हैं, हालांकि अदाणी जैसी बड़ी कंपनी के प्रोजेक्टस किसी भी प्रदेश में रोजगार और तरक्की के अवसर लाने की क्षमता रखते हैं।
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By Anil Paal
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