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Maha Kumbh Mela : महाकुंभ मेला, 144 वर्ष बाद इस आयोजन का महत्त्व, उत्तर प्रदेश को मिला नया 76वां ज़िला

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जल्द ही महाकुंभ (Maha Kumbh) का आयोजन होने वाला है और इस बार का महाकुंभ (Maha Kumbh) अपने आप में विशेष होने वाला है, क्योंकि ये एक वृहद महाकुंभ है। जिसका आयोजन 144 वर्षों बाद हो रहा है। उत्तर प्रदेश की सरकार की ओर से इस पूरे आयोजन को सफल बनाने के लिए और प्रशासनिक सहूलियत को ध्यान में रखते हुए जिस जगह पर महाकुंभ (Maha Kumbh) का आयोजन होने वाला है। उसको टेंपरेरी आधार पर एक ज़िला घोषित कर दिया गया है।

Maha Kumbh Mela : महाकुंभ मेला, 144 वर्ष बाद इस आयोजन का महत्त्व,  उत्तर प्रदेश को मिला नया 76वां ज़िला
कुंभ मेला प्रयागराज

उत्तर प्रदेश का नया 76वां ज़िला

उत्तर प्रदेश की सरकार ने 2025 के महाकुंभ को ध्यान में रखते हुए राज्य में महाकुंभ क्षेत्र को एक नया ज़िला किया गया है, इस नए ज़िले को महाकुंभ मेला ज़िले के नाम से जाना जाएगा और ये उत्तर प्रदेश का 76वां जिला होने वाला है। अभी आपके कुल 75 ज़िले हैं। इस नये ज़िले में प्रयागराज जो ज़िला है उसकी 4 तहसीलों के 67 गांव को मिलाकर के इस नए जिले का निर्माण किया गया है तो जब तक प्रयागराज में इस पूरे महाकुंभ कार्यक्रम का आयोजन होगा तब तक यह ज़िला अस्तित्व में रहेगा और जैसे ही महाकुंभ का आयोजन समाप्त होगा, यह ज़िला भी समाप्त हो जाएगा और वापस से जो यह 4 तहसीलें हैं प्रयागराज ज़िले में शामिल हो जाएंगी। देखा जाए तो आप कह सकते हैं कि टेंपरेरी आधार पर प्रशासनिक सहूलियत को ध्यान में रखते हुए इस पूरे ज़िले का निर्माण किया गया है।

महाकुंभ मेला

महाकुंभ को लेकर के अक्सर मन में सवाल रहते हैं। कुंभ से संबंधित कई सारे शब्दों का जिक्र होता है, जैसे महाकुंभ, अर्धकुंभ और भी बहुत सारे शब्द आते हैं तो इन शब्दों का मतलब क्या है। साथ ही एक सवाल ये भी हो सकता है कि 12 सालों का चक्कर क्या है। 144 सालों को की बात आती है इसका क्या मतलब है तो इन्हीं तमाम सवालों को यहां पर समझेंगे। एक सवाल ये भी हो सकता है कि आखिर महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में ही क्यों होता है। इसके पीछे का क्या कारण है यह भी जानेंगे।

महाकुंभ के विषय में

महाकुंभ मेला (Maha Kumbh Mela) की बात करें तो ये दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागमों से एक माना जाता है। हिन्दू धर्म का यह प्रमुख आयोजन है जिसमें आध्यात्मिक शुद्धि और अनुष्ठानों के लिए लाखों तीर्थयात्री शामिल होते है। कुंभ मेला मुख्य तौर पर भारत में चार स्थानों पर आयोजित किया जाता है। प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन तो इन चार जगहों पर आपको कुंभ मेला देखने को मिलता है। इसमें प्रयागराज में जो कुंभ मेला आयोजित होता है जिसको पहले हम इलाहाबाद के नाम से जानते थे तो यहां आयोजित होने वाले मेले का अपने आप में विशेष महत्त्व माना जाता है। उसकी कहानी पर भी बात करेंगे लेकिन अगर आप कुंभ की कहानी पर बात करें कि इसकी शुरूआत कहां से होती है तो पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से है। देवताओं और असुरों ने मिलकर अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। जब समुद्र मंथन किया गया तो उसके बीच में भी बहुत सारी घटनाएं हुई लेकिन समुद्र मंथन जब समाप्त हुआ तो वहां पर एक अमृत का कलश प्राप्त होता है। कलश से अमृत की कुछ बूंदे पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरती हैं। पौराणिक कथाओं में ऐसा कहा जाता है कि जिन चार स्थानों पर अमृत की बूंदे गिरती हैं, वो चार स्थान पवित्र स्थान बन जाते हैं। वो चार स्थान है प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। यही चार स्थान है जहां पर कथाओं के मुताबिक अमृत की बूंदे गिरी थी। इन्हीं चार जगहों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इस वजह से इन दिव्य स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है।

हमने यहां पर बात की इन चार जगहों पर कुंभ मेले के आयोजन की लेकिन अब इसमें भी सवाल ये उठता है कि आखिर अगर ये चार जगह हैं तो इसमें से प्रयागराज महत्त्वपूर्ण क्यों है। प्रयागराज को इतना विशेष महत्व क्यों दिया जाता है तो प्रयागराज को इतना महत्त्व इसलिए दिया जाता है, क्योंकि प्रयागराज को तीर्थों स्थलों का राजा कहते है। यह तीर्थ स्थलों में भी सबसे विशेष माना जाता है और कहा ये जाता है कि ब्रह्मा ने अपना पहला यज्ञ यहीं पर किया था। इसी वजह से प्रयागराज अपने आप में महत्त्वपूर्ण हो जाता है। इसके अलावा पौराणिक कथाओं में आपको ये भी देखने को मिलेगा कि प्रयागराज में तीन नदियों का संगम भी हैं। इनमें से एक सरस्वती है जो कि पुरानी कथाओं में आपको मिलती है लेकिन वर्तमान समय में अदृश्य हो गई है।

कुंभ का समागम 4 अलग-अलग जगहों पर होता है

हरिद्वार में जो कुंभ मेले का आयोजन होता है वो गंगा नदी के किनारे होता है। उज्जैन में जो कुंभ मेले का आयोजन होता है वो शिप्रा नदी के तट पर होता है। नासिक में जो कुंभ का आयोजन होता है वह गोदावरी नदी के तट पर होता है और गोदावरी नदी को दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है। प्रयागराज में जो कुंभ का आयोजन होता है, वह तीन नदियों के संगम पे होता है। यह तीन नदियां गंगा, यगुना और पौराणिक नदी सरस्वती है।

कुंभ मेला 12 वर्षों में 4 बार मनाया जाता है। हरिद्वार और प्रयागराज में अर्धकुंभ मेला हर छठे वर्ष आयोजित किया जाता है। महाकुंभ मेला हर 12 वर्ष  प्रयागराज में आयोजित होता है। इसके अलावा प्रयागराज में प्रति वर्ष माघ महीने मे जनवरी से मार्च के बीच में माघ कुंभ का भी आयोजन होता है। एक वृहद महाकुंभ है  जो 2025 में आयोजित हो रहा है। वृहद महाकुंभ का क्या मतलब है। दरअसल वृहद महाकुंभ का मतलब यह है कि प्रयागराज में महाकुंभ मेला जो की 12 वर्ष पर लगता है जब वह 12 बार आयोजित हो जाता है यानी 144 वर्ष होन पर जब यह 12वां महाकुंभ का आयोजन किया जाता है तो उसी को कहते है वृहद महाकुंभ। यह प्रक्रिया ऐसे ही हर 144 वर्ष पर रिपिट होती है।

ऐतिहासिक विकास

इसके ऐतिहासिक विकास की अगर बात करें तो इसकी शुरूआत जब आप ढूंढने जाते है तो कथाओं में ऐसा कहा जाता है कि आदिगुरू शंकराचार्य की ओर से इस महाकुंभ (Maha Kumbh) कि शुरूआत की गई थी। प्राचीन उत्पत्ती की अगर बात करें तो मौर्य और गुप्त काल के दौरान यानी कि चौथी शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी ईसा पूर्व के बीच में कुंभ मेले की शुरूआत हुई थी लेकिन उस समय बहुत बड़े लेवल पर इसका आयोजन नहीं होता था। छोटे-छोटे लेवल पर अलग-अलग जगहों पर आयोजन किया जाता था। इसके बाद पुष्यभूति वंश के राजा हर्षवर्धन ने प्रयागराज में पहली बार कुंभ मेले का आयोजन बड़े लेवल पर कराया था। 

मध्यकाल में अगर आप देखें तो चोल और विजयनगर साम्राज्य, दिल्ली सल्तनत, मुगल जैसे शाही राजवंशों ने प्रयागराज में होने वाले कुंभ मेले के आयोजन का समर्थन किया। अकबर ने अपनी धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने के क्रम में वर्ष1565 में नागा साधुओं को मेले में शाही प्रवेश का नेतृत्व प्रदान किया था। इसके बाद से नागा साधु लगातार प्रयागराज कुंभ मेले में शामिल होते आ रहें हैं। 

औपनिवेशिक काल की बात करें तो ब्रिटिश शासन काल में दौरान भी पूरी प्रक्रिया वैसे ही चलती रही। इस आयोजन से ब्रिटिश शासक बहुत चकित होते थे। ब्रिटिश शासकों ने इसका दस्तावेजीकरण भी किया। इसके अलावा 19 शताब्दी मे जेम्स प्रिंसेप ने इसकी अनुष्ठानिक प्रथाओं और सामाजिक-धार्मिक गतिशीलताओं का वर्णन अपनी किताब में किया है।

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By Anil Paal

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