क्या आपने कभी सोचा है कि रामेश्वरम शिवलिंग का संबंध भगवान राम और रामायण काल से क्यों जुड़ा है। रामेश्वरम मंदिर (Rameshwaram Temple) को किसने बनाया और यह कितने हजार साल पुराना हो सकता है। जब भगवान राम लंका पर विजय पाने के लिए रामेश्वरम में ज्योतिर्लिंग की स्थापना कर रहे थे तो उन्हें इस अनुष्ठान के लिए एक पुरोहित की आवश्यकता पड़ी। लेकिन सवाल यह है कि उन्होंने अपने शत्रु रावण को ही इस अनुष्ठान के लिए क्यों बुलाया। क्या यह सत्य है या सिर्फ एक कहानी? इसके साथ ही रामेश्वरम में राम ने एक ही शिवलिंग की स्थापना की थी। लेकिन आज मंदिर में दो शिवलिंग हैं तो दूसरी शिवलिंग कहां से आई और इसे कौन लाया। रामेश्वरम का सबसे बड़ा रहस्य है, राम सेतु। जब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने सैटेलाइट से राम सेतु की तस्वीरें ली तो जो खुलासा हुआ। उसने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया। क्या यह मानव निर्मित पुल है या प्राकृतिक? यह आज तक सबसे बड़ा रहस्य बना हुआ है। इसके अलावा रामेश्वरम का एक और चमत्कारिक रहस्य है। इसके पानी में तैरते पत्थर। यह पत्थर पानी में कैसे तैरते हैं? क्या यह सिर्फ आस्था और चमत्कार का विषय है या विज्ञान का? वैज्ञानिकों ने इस पर गहन शोध की है और उनकी रिसर्च रिपोर्ट से कई तथ्य सामने आए हैं। जिन्हें जानकर आपको इन रहस्यों का सच पता चलने वाला है और मंदिर के अंदर छिपे 22 पवित्र कुंड भी अपनी अनोखी कहानियों के लिए जाने जाते हैं। इन कुंडों का भगवान राम से गहरा संबंध है और इनमें से हर कुंड का पानी अलग-अलग स्वाद और गुण धर्म का है। इन कुंडों का संबंध भगवान राम और रावण के अनुष्ठान से कैसे जुड़ा है यह भी एक बड़ा सवाल है। मंदिर के गर्भगृह में छिपी प्राचीन मणि की कहानी भी कम रहस्यमय नहीं है। यह मणि इतनी महत्त्वपूर्ण क्यों है और इसे इतनी गुप्त से क्यों रखा गया है? इन सभी रहस्यों का सच जानने के लिए हमें त्रेता युग से लेकर आधुनिक विज्ञान तक का सफर तय करना होगा तो आइए भगवान राम इतिहास और विज्ञान के इस अद्भुत संगम को समझने की कोशिश करते हैं।

रामेश्वरम भारत के तमिलनाडु राज्य में स्थित हिंदू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। इसे चार धामों में से एक माना जाता है और यह भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में 11वां ज्योतिर्लिंग है। यही कारण है कि इसे दक्षिण भारत का काशी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रामेश्वरम का संबंध त्रेता युग से है। यह वही स्थान है, जहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले भगवान शिव की पूजा की थी। रामेश्वरम का इतिहास और इसके रहस्यों को समझने के लिए हमें त्रेता युग में जाना होगा। जब भगवान राम को 14 साल का वनवास हुआ था। वनवास के दौरान भगवान राम लक्ष्मण और माता सीता ने कई पवित्र स्थलों की यात्रा की उनकी यह यात्रा अयोध्या से शुरू होकर नंदीग्राम, श्रृंगवेरपुर, प्रयागराज, चित्रकूट, दंडकारण्य वन, और वहां से पंचवटी तक पहुंची। इसके बाद भगवान राम दुर्ग और किष्किंधा होते हुए लेपाक्षी पहुंचे और अंत में रामेश्वरम पहुंचे।
शिवलिंग की स्थापना (Establishment of Shivalinga)
रामेश्वरम के समुद्र तट पर पहुंचने के बाद भगवान राम ने लंका पर विजय के लिए अपने आराध्य भगवान शिव की पूजा करने का विचार किया। सनातन धर्म के अनुसार किसी भी कार्य की शुरुआत विशेष पूजा और अनुष्ठान से होती है। इस पूजन के लिए भगवान राम ने हनुमान जी को हिमालय भेजा ताकि वहां से एक दिव्य शिवलिंग लाया जा सके। हनुमान जी तुरंत कैलाश पर्वत की ओर रवाना हो गए। इस अनुष्ठान को पूरा करने के लिए एक आचार्य की आवश्यकता थी। जब जामवंत ने बताया कि आसपास कोई योग्य आचार्य नहीं है, तो श्रीराम ने एक अप्रत्याशित निर्णय लिय। उन्होंने लंकापति रावण को ही आमंत्रित करने का सुझाव दिया। रावण जो शिव जी का परम भक्त और वेदों का ज्ञाता था। इस अनुष्ठान के लिए सबसे उपयुक्त था। जामवंत जी ने लंका जाकर रावण को निमंत्रण दिया रावण सहर्ष अनुष्ठान में आने के लिए तैयार हो गया और अपने साथ माता सीता को लेकर रामेश्वरम पहुंचा। वहां गणपति पूजन कलश स्थापना और नवग्रह पूजन के बाद रावण ने पूछा शिवलिंग कहां है। श्रीराम ने उत्तर दिया कि हनुमान जी शिवलिंग लेकर आते ही होंगे लेकिन मुहूर्त निकलने वाला था। इस पर रावण ने कहा देरी करना उचित नहीं होगा। सीता जी से कहे कि वह रेत का शिवलिंग बना ले। माता सीता ने सागर की रेत से शिवलिंग का निर्माण किया। जिसे रामलिंगम कहा गया रावण ने विधिपूर्वक पूजा संपन्न कराई। पूजा के अंत में रावण ने दक्षिणा मांगते हुए कहा। हे राम मेरी मृत्यु के समय आप मेरे समक्ष उपस्थित रहना, यही मेरी सबसे बड़ी दक्षिणा होगी। जब हनुमान जी कैलाश पर्वत से शिवलिंग लेकर लौटे तो उन्होंने देखा कि पूजा समाप्त हो चुकी थी। हनुमान जी यह देखकर निराश हो गए। भगवान राम ने उन्हें सम्मानित करने के लिए कहा कि रामेश्वरम में आने वाले भक्त पहले विश्वलिंगम और फिर रामलिंगम की पूजा करेंगे। इसलिए रामेश्वरम के मंदिर में दो शिवलिंग है। यह परंपरा आज भी जारी है, इस प्रकार रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग की स्थापना में रावण ने एक पुरोहित की भूमिका निभाई। यह कथा तमिल भाषा में महर्षि कंबन द्वारा लिखित इरामावतारम में वर्णित है, हालांकि यह वाल्मीकि रामायण या रामचरित मानस में उल्लेखित नहीं है।
राम सेतु का निर्माण (Construction of Ram Setu)
भगवान शिव की पूजा संपन्न होने के बाद भगवान राम को अब रावण के चंगुल से माता सीता को छुड़ाने के लिए लंका जाना था। लेकिन समस्या यह थी कि लंका तक पहुंचने के लिए विशाल समुद्र को पार करना था राम की वानर सेना इतनी बड़ी थी कि उसे समुद्र के पार ले जाना असंभव लग रहा था। भगवान राम ने तीन दिनों तक समुद्र देवता से प्रार्थना की कि वे मार्ग प्रदान करें लेकिन समुद्र शांत नहीं हुआ। तब भगवान राम क्रोधित हो उठे, उन्होंने अपने धनुष पर अग्नि बाण चढ़ा लिया और समुद्र को सुखाने का संकल्प ले लिया। समुद्र देवता भयभीत होकर प्रकट हुए और भगवान राम से क्षमा मांगते हुए बोले हे प्रभु मैं अमर और अटल हूं। मुझे सुखाया नहीं जा सकता लेकिन आपकी सेना के लिए मैं मार्ग प्रदान करूंगा। आपके वानर पुल बनाकर इसे पार कर सकते हैं। समुद्र देवता ने यह भी बताया कि राम की सेना में मौजूद नल और नील इस कार्य में सक्षम है। नल और नील वानर सेना के अद्वितीय योद्धा थे और उनके पिता स्वयं देवताओं के दिव्य शिल्पकार विश्वकर्मा थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार नल और नील को बचपन में एक श्राप मिला था। श्राप यह था कि वे जो भी वस्तु में फेंकें वह कभी डूबेगी नहीं। इस अद्भुत शक्ति ने राम की सेना के लिए समुद्र पर पुल निर्माण को संभव बना दिया। जब भगवान राम ने यह जाना तो उन्होंने नल और नील को समुद्र पर पुल बनाने का कार्य सौंपा। वानरों की अथक मेहनत और नल नील की कुशलता से यह अद्भुत पुल मात्र पाच दिनों में बनकर तैयार हो गया। यह पुल रामेश्वरम से लंका तक 48 किलोमीटर लंबा था यह दिव्य कथा रामायण के युद्ध कांड में वर्णित है और राम सेतु की महिमा को प्रमाणित करती है।

हम सबके मन में यह सवाल जरूर उठता है क्या राम सेतु सच में भगवान राम की वानर सेना ने बनाया था या यह एक प्राकृतिक रचना है। आज हम विज्ञान इतिहासकारों और वैश्विक संस्थानों द्वारा किए गए शोध पर नजर डालेंगे। जिन्होंने इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश की। राम सेतु तमिलनाडु के पंबन द्वीप और श्रीलंका के मन्नार द्वीप के बीच बना एक चूना पत्थर का पुल है। जिसकी लंबाई करीब 48 किलोमीटर है। वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के 22वें सर्ग में राम सेतु निर्माण का विस्तार से वर्णन मिलता है। श्रीराम ने नल के नेतृत्व में वानर सेना को समुद्र पर पुल बनाने का आदेश दिया। नल और नील की अगुवाई में वानर सेना ने केवल पाच दिनों में 100 योजन का पुल तैयार कर दिया। जो लंका के सुबल पर्वत तक पहुंचा। इसी पुल से होकर श्रीराम ने अपनी सेना के साथ लंका पहुंचकर रावण का वध किया और विजय पाई तुलसीदास जी ने भी रामचरित मानस के लंका कांड में इस अद्भुत सेतु निर्माण का वर्णन किया है।
“अति उतंग गिरि पादप लीलहिं
लेहिं उठाइ।
आनी
देहिं नल नीलहि रचहिं ते सेतु बनाइ।।”
यानी वानर और भालू ऊंचे-ऊंचे पर्वतों और पेड़ों को उखाड़ कर लाते और नल-नील को देते, जो उन्हें गढ़कर सुंदर सेतु का निर्माण करते थे। यह वर्णन केवल रामायण तक सीमित नहीं है। स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्म पुराण और कालिदास की रघुवंश में भी राम सेतु या नल सेतु का जिक्र मिलता है। राम सेतु जिसे एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है। इतिहास और मान्यताओं से जुड़ी एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
इस्लामिक परंपराओं में जब हजरत आदम को स्वर्ग से निष्कासित किया गया तो यह माना जाता है कि उन्होंने श्रीलंका के आदम की चोटी पर कदम रखा। प्राचीन स्रोतों के अनुसार श्रीलंका से भारत जाने के लिए उन्होंने एक पुल का उपयोग किया जिसे बाद में एडम ब्रिज के नाम से जाना गया। पश्चिमी जगत ने पहली बार नौवीं शताब्दी में इब्न खुरादेबे की पुस्तक रोड्स एंड स्टेट्स में इसका उल्लेख किया। इसमें इसे सेट बंधाई या ब्रिज ऑफ द सी (Bridge of The Sea) कहा गया।
2002 में नासा ने सैटेलाइट से ली गई कुछ तस्वीरें जारी की। जिनमें राम सेतु (Ram Setu) की आकृति स्पष्ट रूप से दिखाई दी। इन तस्वीरों ने दुनिया भर में टहलका मचा दिया। भारत में इन्हें रामायण में वर्णित राम सेतु के प्रमाण के रूप में देखा गया। लेकिन कुछ सालों बाद नासा ने इन दावों से खुद को अलग कर लिया। नासा के प्रवक्ता मार्क हेस ने कहा अंतरिक्ष से ली गई तस्वीरें किसी संरचना की उत्पत्ति या उसकी आयु को साबित नहीं कर सकती। यह तय करना असंभव है कि इस संरचनाओं का निर्माण मानव ने किया है या यह प्रकृति का अद्भुत कार्य है। नासा का कहना था कि इन तस्वीरों का गलत राजनीतिक उपयोग किया गया। बावजूद इसके राम सेतु का रहस्य आज भी गहराई में छिपा हुआ है। 15वीं शताब्दी तक राम सेतु समुद्र तल से ऊपर था और लोग इसे पैदल पार कर सकते थे। उस समय तक समुद्री तूफानों ने इस क्षेत्र को गहराई नहीं दी थी। लेकिन 1480 में आए एक भयंकर चक्रवात ने इस सेतु को बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दिया और तब से यह समुद्र में डूब गया। 2017 में अमेरिकी साइंस चैनल ने अपने एक टीवी शो में राम सेतु के बारे में चौकाने वाला दावा किया। चैनल ने कहा कि वैज्ञानिक जांच से यह संकेत मिलते हैं कि भगवान राम द्वारा श्रीलंका तक पुल बनाने की पौराणिक कथा सच हो सकती है। उनके अनुसार राम सेतु बनाने के लिए पत्थर दूर-दूर से लाए गए थे और उन्हें रेतीले द्वीपों की श्रृंखला के ऊपर व्यवस्थित रूप से रखा गया था। लेकिन बड़ा रहस्य यह है कि यह पत्थर वहां कैसे पहुंचे। भूवैज्ञानिक विश्लेषण से और भी रोचक तथ्य सामने आते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि इन पत्थरों की उम्र लगभग सात 7000 साल पुरानी है। जबकि जिस रेत के ऊपर यह रखे गए हैं वह 4000 साल पुरानी है। यह विरोधाभास इस ओर इशारा करता है कि सैटेलाइट इमेज में दिख रही यह संरचना प्राकृतिक नहीं बल्कि इंसानों द्वारा बनाई गई हो सकती है। यह नतीजे रामायण की पौराणिक कथा को और भी मजबूत आधार देते हैं।
राम सेतु विवाद (Ram Setu Controversy)
राम सेतु पर विवाद तब शुरू हुआ जब तमिलनाडु के रामेश्वरम के पास सेतु समुद्रम शिप कैनाल परियोजना का ऐलान किया गया। 2005 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने इस प्रोजेक्ट को लॉन्च किया। योजना के तहत राम सेतु के कुछ हिस्सों को तोड़कर रेत हटाई जानी थी ताकि समुद्री जहाज आसानी से गुजर सके। इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य रामेश्वरम को देश का सबसे बड़ा शिपिंग हार्बर बनाना था। लेकिन इस फैसले ने पूरे भारत में विरोध की लहर पैदा कर दी। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि इस पुल के नीचे मौजूद टेक्टोनिक प्लेट्स पहले ही कमजोर हैं और किसी भी छेड़छाड़ से भयानक प्राकृतिक आपदा आ सकती है। वहीं पर्यावरण विदों ने कहा कि यह इलाका 36 हजार से अधिक दुर्लभ समुद्री जीवों और पौधों का घर है। राम सेतु को नष्ट करने से इस संवेदनशील इकोसिस्टम को भारी नुकसान पहुंचेगा और मानसून चक्र भी प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा भाजपा और हिंदू संगठनों ने इस परियोजना को आस्था पर चोट बताते हुए विरोध किया और राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग की। उनका कहना था कि यह केवल एक पुल नहीं बल्कि भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का प्रतीक है। 2007 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था। जिसमें यह दावा किया गया था कि वाल्मीकि रामायण में वर्णित भगवान राम द्वारा बनाए गए राम सेतु के पीछे कोई वैज्ञानिक और ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। लेकिन जैसे ही इस बयान ने धार्मिक भावनाओं को भड़काया और पूरे देश में विरोध हुआ। सरकार ने जल्द ही अपना हलफनामा वापस ले लिया।
हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्था इसरों ने नासा के आई सेट टू उपग्रह के साथ मिलकर राम सेतु का एक विस्तृत नक्शा तैयार किया। जिसे एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है। यह नक्शा 10 मीटर रेजोल्यूशन के माध्यम से राम सेतु की संरचना को दिखाता है। इसके लिए 2018 से 2023 के बीच 6 वर्षों तक डेटा जुटाया गया। यह शोध इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह इस प्राचीन संरचना के निर्माण और क्षेत्र के इतिहास के बारे में नई जानकारी प्रदान करता है। राम सेतु का लगभग 98.2 प्रतिशत हिस्सा उथले पानी में डूबा हुआ है और इस पर अध्ययन जारी है। वैज्ञानिक और इतिहासकार अभी इस पर रिसर्च कर रहे हैं। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने हाल ही में राम सेतु की एक आश्चर्यजनक तस्वीर जारी की है। जिसे एडम्स ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है यह तस्वीर कोपरनिकस सेंटिनल टू उपग्रह द्वारा ली गई है। इस तस्वीर ने राम सेतु के रहस्य को और गहराई से समझने का मौका दिया है। वैज्ञानिक और शोधकर्ता अब इस संरचना के बारे में नई जानकारी जुटाने में लगे हैं।
रामेश्वरम के तैरते पत्थरों का रहस्य
रामेश्वरम के तैरते हुए पत्थरों की जो सदियों से श्रद्धा और रहस्य का विषय बने हुए हैं। कहा जाता है कि भगवान राम की वानर सेना ने इन्हीं पत्थरों का इस्तेमाल करके समुद्र पर पुल बनाया था। जिसे हम आज राम सेतु के नाम से जानते हैं। इन पत्थरों की खासियत यह है कि यह पानी में तैरते हैं, जो इन्हें विशेष बनाता है। वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार राम सेतु के निर्माण में इस्तेमाल किए गए पत्थर प्यूम नाम की चट्टानें हो सकती हैं। प्यूमस चट्टान ज्वालामुखी से निकलने वाले गर्म लावा से बना एक अद्भुत पत्थर है। ज्वालामुखी के अंदर का तापमान बेहद उच्च होता है। लगभग 1600 डिग्री सेल्सियस तक, जब यह गर्म लावा ज्वालामुखी से बाहर निकलता है और ठंडी हवा या समुद्र के पानी से मिलता है तो उसमें फंसी हुई गैसें और पानी बाहर निकलने लगते हैं। तापमान के इस तेज अंतर के कारण लावा जम जाता है और उसके अंदर बुलबुले फंस जाते हैं यही बुलबुले इसे हल्का बनाते हैं और यही कारण है कि प्यूम पत्थर पानी में तैरता है। लेकिन एक सवाल जो आज भी वैज्ञानिकों को उलझा देता है। वह यह है कि प्यूम पत्थर हमेशा तैरते नहीं हैं। फिर भी राम सेतु के पत्थर 7000 साल बाद भी पानी पर तैरते हैं यह बात हर किसी के लिए रहस्य है। इसके अलावा रामेश्वरम के आसपास आज किसी ज्वालामुखी का कोई अस्तित्व नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि भगवान राम की वानर सेना ने इतने पत्थर कहां से जुटाए। यह रहस्य आज भी विचार और चर्चा का विषय है।

रामेश्वरम शहर से लगभग डेढ़ मील उत्तर पूर्व में स्थित गंधमादन पर्वत एक छोटी सी पवित्र पहाड़ी है। मान्यता है कि हनुमान जी ने इसी पर्वत से समुद्र लांघ कर लंका जाने के लिए अपनी ऐतिहासिक छलांग लगाई थी। यही वह स्थान है जहां भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई के लिए अपनी विशाल सेना का संगठन किया था इस पर्वत पर आज एक भव्य मंदिर स्थित है। जिसे पादुका मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में भगवान राम के पवित्र चरण चिन्हों की पूजा की जाती है जो श्रद्धालुओं के लिए आस्था और भक्ति का केंद्र है।
रामेश्वरम के 22 पवित्र कुंडों का रहस्य
पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान श्री राम लंका पर विजय प्राप्त कर माता सीता को लेकर लौट रहे थे, तब उन्होंने गंधमादन पर्वत पर विश्राम किया। वहां ऋषि मुनियों ने भगवान राम को बताया कि रावण एक ब्राह्मण था और उसके वध के कारण उन पर ब्रह्म हत्या का दोष लग गया है। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की पूजा करने का सुझाव दिया गया। भगवान राम ने अग्नि तीर्थम में समुद्र के खारे पानी में स्नान करके भगवान शिव की पूजा की और ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए। माना जाता है कि यहां स्नान करने से भक्तों के सभी पाप मिट जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने अपने बाणों से रामेश्वरम मंदिर परिसर में बने इन 22 कुंडों का निर्माण किया। इन कुंडों को तीर्थम कहा जाता है और इन्हें भगवान राम के 22 बाणों का प्रतीक माना जाता है। इन कुंडों का जल भी एक रहस्य है समुद्र के किनारे खारे पानी के बीच यह कुंड मीठे पानी से भरे होते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इस जल से स्नान करने से कई शारीरिक बीमारिया ठीक हो सकती हैं। स्कंद पुराण के अनुसार इन तीर्थ कुंडों में स्नान करना रामेश्वरम की तीर्थ यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और इसे तपस्या के समान पुण्यदाई माना जाता है। यह आज भी श्रद्धालुओं के लिए एक अद्भुत आस्था और रहस्य का केंद्र बना हुआ है।
रामेश्वरम मंदिर में स्थित मणि का रहस्य
हर सुबह 4 बजे से 6 बजे के बीच रामेश्वरम मंदिर में भक्तों को मणि दर्शन का सौभाग्य मिलता है। इस विशेष दर्शन में स्फटिक से बनी एक कीमती क्रिस्टल को पवित्र शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। किंवदंती के अनुसार यह मणि शेषनाग से संबंधित है, जो अपनी दिव्यता और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है। ऐसा मान जाता है कि इस मणि के दर्शन से भक्तों को अद्भुत ऊर्जा और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। मणि दर्शन से पहले भक्तों को अग्नि तीर्थम में डुबकी लगानी होती है और उसके बाद बैस कुंड में स्नान करना अनिवार्य होता है। यह परंपरा पवित्रता बनाए रखने और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करने के लिए है। रामेश्वरम और उसका सेतु तो बेहद प्राचीन है लेकिन रामनाथ मंदिर उतना पुराना नहीं है। दक्षिण भारत के कई मंदिर लगभग डेढ़ दो हजार साल पुराने हैं लेकिन रामनाथ मंदिर का निर्माण मात्र 800 साल पहले शुरू हुआ। इस भव्य मंदिर के निर्माण में सबसे बड़ी चुनौती थी पत्थरों की व्यवस्था। रामेश्वरम के आसपास कोई बड़ा पहाड़ नहीं है जहां से पत्थर लाए जा सकते थे। गंधमादन पर्वत जो वास्तव में एक छोटा सा टीला है, से इतने विशाल मंदिर के लिए पत्थर उपलब्ध नहीं हो सकते थे। रामेश्वरम मंदिर में उपयोग किए गए लाखों टन पत्थर नावों में लादकर दूर-दूर से लाए गए। रामनाथ मंदिर की सबसे अनोखी विशेषता है इसका गलियारा। यह विश्व का सबसे लंबा गलियारा है। जो अपनी भव्यता और वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है मंदिर के ताम्रपट के अनुसार 1173 ईसवी में श्रीलंका के राजा पराक्रम बाहू ने गर्भगृह का निर्माण करवाया। 17वीं शताब्दी में रामेश्वरम मंदिर का वर्तमान डिजाइन तैयार किया गया। राजा किझावन सेतुपति ने इस मंदिर के निर्माण का आदेश दिया और सेतुपति साम्राज्य और जाफना के राजा ने भी इसके निर्माण में योगदान दिया। यह भव्य मंदिर कई व्यक्तियों और राजाओं के योगदान का नतीजा है। लेकिन इसकी अधिकांश वास्तुकला सेतुपति राजाओ द्वारा निर्मित मानी जाती है।
तो यह था रामेश्वरम राम सेतु और शिवलिंग का इतिहास और रहस्य।
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By Anil Paal
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