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Mughal Empire || क्यों आये थे मुगल भारत? क्या है मुगलों का सम्पूर्ण इतिहास?

भारत का इतिहास मुगलों के बिना अधूरा है। मुगलों ने भारत में 300 सालों से भी अधिक समय तक राज किया। बाबर, अकबर और शाहजहां से लेकर बहादुर शाह जफर तक, कई मुगल शासकों ने दिल्ली की राजगद्दी से भारत में शासन किया। लेकिन कई सवाल आज भी इतिहास के पन्नों से गायब हैं, आखिर मुगल भारत क्यों आए थे?  मुगलों ने भारत में मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) कैसे स्थापित किया। राजपूतों और मराठा के रहते कैसे विदेशी ताकतों ने भारत में इतने लंबे समय तक राज किया? आखिर क्या है मुगलों के इतिहास की असली कहानी? आइए इसके बारे में थोड़ा विस्तार में समझते हैं।

Mughal Empire || क्यों आये थे मुगल भारत? क्या है मुगलों का सम्पूर्ण इतिहास?

मुगल साम्राज्य की स्थापना

दोस्तों अगर बाबर हिंदुस्तान ना आता तो भारत में मुगल साम्राज्य (Mughal Empire) की स्थापना नहीं होती। भारत में कभी लाल किला ताजमहल जैसी भव्य इमारतें ना देखने को मिलती। बाबर का असली नाम जहीरुल मोहम्मद था। उसका जन्म 14 फरवरी 1483 को फरजाना में हुआ था। फरजाना आज के समय में उज्बेकिस्तान के अंतर्गत आता है। बाबर को तैमूर और चंगेज खान का वंशज भी माना जाता है। केवल 12 वर्ष की उम्र में ही बाबर ने फरजाना की राजगद्दी संभालनी शुरू कर दी थी। यह बात बाबर के कुछ रिश्तेदारों और अंकल को रास नहीं आई और उन्होंने बाबर को हटाने के लिए षड्यंत्र बनाने शुरू कर दिए। बाबर को फरजाना और समरकन से बेदखल कर दिया गया। कई सालों बाद साल 1504 में बाबर ने अफगान की राजधानी काबुल को जीत लिया और अपनी सत्ता स्थापित की। लेकिन बाबर सिर्फ काबुल से संतुष्ट होने वाला नहीं था। वह अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। बाबर जानता था कि यदि उसे साम्राज्य का विस्तार करना है तो इसके लिए धन दौलत की भी जरूरत होगी और उस समय भारत से ज्यादा धन शायद ही किसी और के पास था दुनिया भर में उस समय भारत को दुनिया में सोने की चिड़िया कहा जाता था। 1525 में बाबर ने भारत में एंट्री करने की योजना पर काम करना शुरू किया। भारत को गुलाम बनाने और यहां राज करने के उद्देश्य से उसने भारत का रुख किया।

बाबर का शासन

उस समय हिंदुस्तान में लोदी वंश का राजा इब्राहिम लोदी का शासन चल रहा था। इसके अलावा राजस्थान में राजपुताना का शासन चल रहा था, तो वहीं साउथ में विजयनगर अंपायर अपने पैर पसार रहा था। इब्राहिम लोदी बहुत सनकी था। उसे कुर्सी से हटाने के लिए उसके चाचा अलाउद्दीन लोदी और पंजाब के गवर्नर दौलत खान ने एक प्लान बनाया और काबुल से बाबर को भारत आने का निमंत्रण भेजा। बाबर को तो जैसे इसी मौके का इंतजार था और तुरंत ही अपनी सेना के साथ उसने भारत की ओर रुख कर दिया। 15 दिसंबर 1525 को उसने सिंधु नदी पार की बाबर के पास सिर्फ 12000 की सैनिकों की टुकड़ी थी। सिंधु नदी को पार करते ही बाबर ने पंजाब प्रांत को जीतना शुरू कर दिया। बाबर के पास दमदार आर्मी के साथ ही तोपखाने और बारूद यानी कि गन पाउडर भी था। पानीपत का युद्ध भारत की धरती पर लड़ा गया पहला युद्ध था, जिसमें गन पाउडर का इस्तेमाल किया गया था। बाबर एक कुशल आर्मी कमांडर भी था। उसे युद्ध का बहुत अच्छा खासा तजुर्बा था। साथ ही उसकी स्ट्रेटजी भी कमाल की थी। वहीं दूसरी ओर इब्राहिम लोदी के पास 1 लाख सैनिकों की विशाल आर्मी थी। जिसमें पैदल सैनिक, हाथी, घोड़े, बैल गाड़ियां सब कुछ थी। इतनी बड़ी सेना को देखकर भी बाबर का साहस डगमगा नहीं। वह काफी बहादुर योद्धा माना जाता था। काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान में आज भी बाबर को एक महान योद्धा के रूप में जाना जाता है। कई जगह उसके पुतले भी लगे हैं। वहां के लोगों को बताया जाता है कि बहुत कम सेना के साथ बाबर ने भारत पर फतह हासिल की थी। पानीपत दिल्ली से करीब 60 किमी की दूरी पर स्थित है और वर्तमान समय में हरियाणा का एक जिला है। बाबर ने इब्राहिम लोदी को युद्ध के लिए ललकारना शुरू किया। अपनी रणनीति वह पहले ही बना चुका था। उसने दुश्मन के इलाके में एक खाई खुदवा, जिससे कि लोदी की सेना ज्यादा फैलाव ना कर पाए और बाबर की सेना को आसान टारगेट मिल सके। बाबर की सेना के कुछ लोगों ने कहा कि हमें वापस लौट जाना चाहिए लेकिन बाबर ने वापस जाने से साफ इंकार कर दिया। उसने कहा कि हम इतनी दूर आए हैं तो अब दिल्ली जीते बिना वापस नहीं लौटेंगे। बाबर अपनी सेना की प्लानिंग भी बहुत अच्छी तरीके से करता था। सबसे आगे स्काउट्स खड़े होते थे, जो दुश्मन सेना की खबर बाबर तक पहुंचाते थे। उसके पीछे बैल गाड़ियां लाइन से खड़ी कर देता था। सभी बैलगाड़ी को चमड़े की बेल्ट से बांध दिया जाता था और उनमें थोड़ा-थोड़ा गैप छोड़ दिया जाता था। उन गैप्स में सैनिक तीर कमान लेकर खड़े होते थे और बीच में थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ही तोप-खाने भी तैनात कर दिए जाते थे। सैनिकों के पास जो तीर कमान होते थे, वो भी कोई साधारण नहीं थे। उनकी डोरी खींचने में ही काफी ताकत लगती थी। एक तीर 600 मीटर की दूरी तक जा सकता था, जो करीब सात फुटबॉल के स्टेडियम के बराबर है। हर पाँच सेकंड में सैनिक तीर चला सकता था और एक तीर 4000 पाउंड का फोर्स क्रिएट कर सकता था। बाबर के पास एक वेल ऑर्गेनाइज्ड आर्मी थी। दूसरी ओर लोदी की सेना ने भी मैदान में डेरा डाल दिया। जिसमें 1 लाख से अधिक सैनिक थे लेकिन इतिहासकारों ने लोदी की सेना को सेना ना कहकर बल्कि मेले का नाम दे दिया। बाबर और लोदी दोनों ही सामने वाली सेना के पहले आक्रमण करने का इंतजार कर रहे थे। बाबर जानता था कि उसने पहले अटैक किया तो उसके जीतने की संभावना कम हो जाएगी।

19 अप्रैल 1526 की रात को वह अपनी सेना की एक छोटी सी टुकड़ी को लोदी के कैंप में भेजता है। जैसे ही कुछ सैनिक लोदी के कैंप के पास पहुंचे लोदी की सेना ने उन पर हमला कर दिया। बाबर के सैनिक वापस लौट आए और कुछ सैनिकों की मौत भी हो गई। इससे लोदी खुश हो गया और सोचने लगा कि बाबर की सेना को हराना काफी आसान है। लेकिन असल में बाबर ने तो मछली पकड़ने के लिए सिर्फ दाना फेंका था। 21 अप्रैल 1526 की सुबह लोदी की सेना ने बाबर की सेना पर अटैक कर दिया। लोदी की सेना बाबर के सैनिकों द्वारा बनाए गए ट्रेंच में गिर गई। वहां से बाहर निकलने में उन्हें जितना समय लगा, इतनी देर में बाबर ने तोप चलाने का आदेश दे दिया। लोदी ने सेना में सबसे आगे 300 हाथी तैनात किए थे। उसे लग रहा था कि हाथी जल्द ही सामने वाली सेना को पछाड़ देंगे लेकिन होता इसके बिल्कुल विपरीत है। तोप खानों की आवाज से हाथियों ने अपना संतुलन खो दिया और अपनी ही सेना को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। अपनी ही सेना के कई सैनिकों को हाथियों ने कुचल कर मार दिया। साथ ही तोपखाने से भी उनकी सेना को नुकसान पहुंच रहा था। थोड़ी ही देर में बाबर की पूरी सेना लोदी पर हावी हो होती नजर आई। कई घंटों तक युद्ध जारी रहा, शाम होते ही लोदी मारा गया और उसका कटा हुआ सिर बाबर के सामने पेश कर दिया गया। इस युद्ध के बाद बाबर को अच्छी खासी धन दौलत मिली इतिहासकारों का कहना है कि बाबर ने जीता हुआ सारा धन जनता में बटवा दिया था और इसके बाद जनता ने खुश होकर कलंदर नाम की उपाधि उसे दे दी।

सन 1526 में 43 साल की उम्र में बाबर ने दिल्ली में मुगल सल्तनत की स्थापना की लोदी को हराने के बाद। राजपूतों ने उसका विरोध किया। पानीपत के युद्ध के बाद बाबर ने तीन बड़ी लड़ाइयां लड़ी खानवा का युद्ध, चंदेरी का युद्ध और खागरा का युद्ध, उसने इन सभी में जीत हासिल की। लेकिन 26 दिसंबर 1530 को उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के बाद पहले तो बाबर को आगरा में दफनाया गया। लेकिन उसकी अंतिम इच्छा के मुताबिक बाद में उसे काबुल में दफना दिया गया, जहाँ बाग़-ए-बाबर नाम का उसका मकबरा आज भी बना हुआ है।

हुमायूं का शासन

बाबर के बाद हुमायूं को दिल्ली का बादशाह बनाया गया। हुमायूं के तीन और भाई भी थे। उन्हें भी अलग-अलग राज्य सौंप दिए गए थे। हुमायूं काफी शांत स्वभाव का बादशाह माना जाता था और कोई भी फैसला हमेशा सोच विचार करने के बाद ही लिया करता था। लेकिन वहीं हुमायूं के भाइयों का दिमाग हर वक्त षड्यंत्र में लगा रहता था। तीनों भाई मिलकर यह योजना बनाते थे कि कैसे हुमायूं से दिल्ली का तख्त हासिल किया जाए और कई बार भाइयों के बीच में जंग भी हुई। हुमायूं पर कई बार जानलेवा हमले भी हुए। सन 1539 में चौसा में हुमायूं की भीषण लड़ाई हुई और 1540 में बिलग्राम में भी हुमायूं को युद्ध करना पड़ा। इस युद्ध में हुमायूं की हार हुई और शेरशाह जीत गया और युद्ध में हार के कारण हुमायूं को अपनी जान बचाकर भारत से भागना पड़ा। कुछ समय तक वह सिंध में भेष बदल कर रहा। हुमायूं ने हमीदा बानो से शादी की और मोहम्मद जलालुद्दीन अकबर को जन्म दिया। करीब 15 साल तक भारत से बाहर रहते हुए हुमायूं ने अपनी एक विशाल सेना तैयार कर ली थी। साल 1555 में हुमायूं को फिर से दिल्ली फतह करने में कामयाबी मिल गई, लेकिन इसी वर्ष लाइब्रेरी में सीढ़िया चढ़ते वक्त उसका पैर फिसल गया और उसकी मौत हो गई। हुमायूं की मौत के बाद मुगल साम्राज्य लड़खड़ा गया और राजा हेमू ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिया। उस समय अकबर की उम्र केवल 12 साल की थी और वो राजा हेमू की सेना के आगे कुछ नहीं कर पाया, लेकिन मुगलों के पास एक वफादार सेनापति था। जिसका नाम बैरम खान था, बैरम खान ने एक सेना तैयार की अकबर को युद्ध कौशल की जानकारी दी।

अकबर का शासन

1556 में पानीपत की दूसरी लड़ाई में राजा हेमू को हरा दिया। 13 साल की उम्र में अकबर दिल्ली के तख्त पर विराजमान हो गया। अकबर एक धर्म निरपेक्ष राजा माना जाता था। उसने राजा बनते ही लोगों का दिल जीतना शुरू कर दिया। 1568 में उसने चित्तौड़ को जीता, लेकिन इसके लिए अकबर को कड़ी मेहनत करनी पड़ी। दिल्ली जीतने के बाद अकबर किसी भी तरह से राजस्थान को जीतना चाहता था। क्योंकि राजस्थान के राजपूत काफी बहादुर माने जाते थे और अकबर जानता था कि यदि राजस्थान को जीत लिया तो पूरे हिंदुस्तान को जीतना फिर ज्यादा मुश्किल नहीं होगा।राजस्थान के कारीगरों को हथियार बनाने में महारत हासिल थी। वहीं अकबर की सेना दमशम स्टील के बने हथियार इस्तेमाल किया करती थी, जो खास तौर पर जंग में दुश्मन का सीना छलनी करने के लिए ही बनाए जाते थे। अकबर अपने हाथियों को भी जीरा बख्तर नाम के लोहे का कवच पहनाया करता था। उसे हाथियों का बहुत शौक था। किसी को मौत की सजा देनी होती थी तो उसे हाथी के पैर के नीचे कुचलवा देता था। चित्तौड़ राजस्थान का सबसे मजबूत साम्राज्य था। चित्तौड़ का किला एक अभेद किला माना जाता था। वहां तक पहुंचने के लिए अकबर ने एक प्लान बनाया उसने एक सुरंग खोदी जिसके जरिए उसके सैनिक किले तक पहुंच गए चित्तौड़ का किला एक पहाड़ी पर था। वहां तक सीधे नहीं पहुंचा जा सकता था। दूर से ही चित्तौड़ के सैनिक दुश्मन को देख लेते थे और ऊपर से तीरों की बौछार कर देते थे। लेकिन अकबर के सिर पर जीत का भूत सवार था और लगातार प्रयासों के बाद 25 फरवरी 1528 के दिन उसने चित्तौड़ का दुर्ग जीत लिया। इस जीत के बाद उसका साम्राज्य 25 लाख वर्ग किलोमीटर एरिया में फैल गया था। उसकी सेना ने मैच लॉक बंदूकों का इस्तेमाल करना भी शुरू कर दिया, जो दूर से ही दुश्मन की सेना में आतंक मचाने के लिए जाना जाता था। अकबर की कई बंदूकें आज भी म्यूजियम्स की शान बढ़ा रही हैं।

अकबर को आर्किटेक्चर का भी काफी शौक था। उसने दिल्ली से 250 किमी दूर और आगरा से करीब 40 किमी दूर फतेहपुर सिकड़ी नाम का एक शहर बनवाया। इस शहर में कई बाग और महल उसने बनवाए। वह अपनी राजधानी यहां पर शिफ्ट करना चाहता था। फतेहपुर में पानी की कमी ना हो इसके लिए डैम बनवाए और किले तक पानी पहुंचाने के लिए इंजीनियर्स की मदद से मशीनों का निर्माण कराया, वो मशीन उस समय इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना थी। कहा जाता है कि अकबर ने खुद शहर का नक्शा तैयार किया था और शहर बनाने में उसने खुद भी मजदूरों के साथ कुछ दिन काम भी किया था। 16 साल फतेहपुर सिकड़ी को बसाने में लगे लेकिन यह शहर बहुत जल्द वीरान हो गया। दोस्तों अकबर एक अनपढ़ मुगल बादशाह था। उसने हिंदुओं पर लगने वाले जजिया कर समाप्त कर दिए थे। साल 1605 में अकबर की फूड पॉइजनिंग के कारण उसकी मौत हो जाती है।

जहांगीर का शासन

अकबर के बाद सलीम के हाथ में दिल्ली की कमान आई। सलीम असल में एक अयाश किस्म का व्यक्ति था। सलीम को अपना नाम भी पसंद नहीं था और उसने अपना नाम बदलकर जहांगीर रख लिया। जहांगीर को अन्यायी लोगों से सख्त नफरत थी। गुनहगारों को वह सख्त से सख्त और क्रूर से क्रूर सजा दिया करता था। जहांगीर ने अपने जीवन काल में कुल 20 शादियां की थी। मानबाई सबसे मशहूर रानी हुई लेकिन जहांगीर सबसे ज्यादा प्रेम नूरजहां से किया करते थे। जहांगीर के शासनकाल में ही अंग्रेजों ने भारत में आकर ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की थी और व्यापार करने की इजाजत मांगी थी। 20 बीवियों से जहांगीर की कई संतानें हुई लेकिन उसका केवल एक पुत्र ही जीवित रहा जिसका नाम खुर्रम खान उर्फ शाहजहां रखा गया। सन 1627 में जहांगीर की मौत के बाद शाहजहां दिल्ली का बादशाह बना।

शाहजहां का शासन

शाहजहां के शासनकाल में दिल्ली सहित पूरे हिंदुस्तान ने तेजी से तरक्की की। दुनिया का एक चौथाई सामान का प्रोडक्शन केवल भारत में ही हो रहा था। आर्थिक तौर पर दिल्ली मजबूत होता गया। आर्ट और आर्किटेक्चर को भी उस दौर में काफी बढ़ावा मिला मोती मस्जिद, विश्व प्रसिद्ध ताजमहल, दिल्ली का लाल किला, दीवान आम और दीवान खास जैसे कई नायाब नमूनों का निर्माण शाहजहां ने ही करवाया था। शाहजहां ने अपने लिए एक मयूर सिंहासन भी बनवाया था। जिसमें कई बेशकीमती हीरे जड़े हुए थे, लेकिन 1639 में ईरान के राजा नादिर शाह ने युद्ध में शाहजहां को परास्त कर दिया था और इसके बाद नादिर शाह अपने साथ मयूर सिंहासन वापस ले गया था। शाहजहां जब बूढ़ा होने लगा तो उसने अपना राजपाट बेटों को सौंपने का फैसला किया। शाहजहां ने अपने बड़े बेटे दारा शिकोह को दिल्ली की राजगद्दी सौंपी। दारा शिकोह सभी धर्मों का आदर किया करता था और एक नाय प्रिय राजा था। लेकिन दारा शिकोह के राजा बनते ही शाहजहां के तीसरे बेटे औरंगजेब को हजम नहीं हुई। औरंगजेब ने सन 1658 में अपने भाई के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और दिल्ली का बादशाह बन गया।

औरंगजेब का शासन

बादशाह बनते ही औरंगजेब ने अपने पिता को आगरा के किले में बंद करवा दिया और अपने भाई को मौत के घाट उतार दिया औरंगजेब कितना क्रूर था। इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि भाई के मौत के बाद उसका गला धर से अलग करके औरंगजेब अपने पिता के पास ले गया था।औरंगजेब के बादशाह बनते ही हिंदुओं पर अत्याचार करने उसने शुरू कर दिए। जगह-जगह मंदिर तुड़वा कर मस्जिदों का निर्माण कराया कई हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन किया गया। उसके शासनकाल में ही हर जगह कत्लेआम हो रहा था। यह बातें मराठा मारवाड़ा राजपूत सहित कई हिंदू राजाओं को पसंद नहीं आई और औरंगजेब के खिलाफ युद्ध का शंखनाद कर दिया। औरंगजेब युद्ध में घायल हुआ और करीब तीन महीने महीने तक वह बिस्तर पर ही रहा और सन 1707 में बिस्तर पर ही उसने दम तोड़ दिया। औरंगजेब की मौत के बाद मुगल साम्राज्य धीरे-धीरे अंधेर की ओर बढ़ने लगा।

इसके बाद दिल्ली में कई मुगल बादशाह बने लेकिन किसी में भी वह बात नहीं थी जो अभी तक के सभी मुगलों में थी। सन 1707 से 1712 तक बहादुर शाह प्रथम ने राज किया। उसके बाद जहांदरी शाह, फारूख सियार, मोहम्मद शाह रंगीला, आलमगीर शाहजा तृतीय, अकबर द्वितीय सहित कई राजा हुए किसी ने भी बहुत अधिक समय तक राज नहीं किया और बहुत कम समय में ही दिल्ली के बादशाह बदलते रहे। वहीं दूसरी ओर अंग्रेज लगातार मजबूत हो रहे थे और कई राज्यों में मुगलों के शासन का अंत हो चुका था। मुगलों के अंतिम शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय हुए। जिनकी मौत सन 1822 में म्यानमार में हुई थी, लेकिन बहादुर शाह जफर की मौत से पहले ही मुगल साम्राज्य का अंत हो गया था। सन 1857 मुगल साम्राज्य का दिल्ली में अंतिम समय माना जाता है।

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By Anil Paal

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