बदली जीवनशैली और गैजेट्स का बढ़ता इस्तेमाल गर्दन और रीढ़ की समस्याओं का बड़ा कारण बन रहा है। खासकर, गर्दन से जुड़े रीढ़ के ऊपरी हिस्से की समस्याएं युवाओं में तेजी से बढ़ी हैं। इसे सर्वाइकल पेन (Cervical pain) कहते है। अच्छा यह है कि शुरु में ही ध्यान देने से सर्जरी से बचा सकता है। ब्रिटिश जनरल ऑफ स्पोटर्स मेडिसीन में छपे एक लेख के अनुसार पिछले एक दशक में स्पाइन (रीढ़) से जुड़ी समस्याओं में 25-30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसमें भी गर्रदन और रीढ़ के ऊपरी हिस्से से जुड़ी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं। इस संबंध में लंबे समय तक अनदेखी करना, तेज दर्द, संक्रमण व लकवाग्रस्त होने की आशंका बढ़ा सकता है।

गर्दन-रीढ़ का हर जोड़ जरुरी
गर्दन के क्षेत्र में जो रीढ़ का भाग होता है, उसे सर्वाइकल स्पाइन कहते हैं। इसमें सात वर्टिब्र (कशेरूकाएं) (सी1-सी7) होती हैं, जो एक-दूसरे से एक इंदरवर्टिबरल डिस्क के द्वारा अलग होती हैं। ये डिस्क ही विभिन्न गतिविधियों के दौरान शॉक एब्जार्बर यानी दवाब सहने का काम करती हैं। सर्वाइकल शपाइन बेहद मुलायम और गर्दन को कमर के ऊपरी भाग से जोड़ती है। मस्तिष्क से संदेशों को पूरे शरीर में पहुंचाने में इसकी बड़ी भूमिका होती है । इसी कारण हमारी गर्दन घूमती है।
उम्र बढ़ने, गलत पॉस्चर, खानपान की गलत आदतों या किसी दुर्घटना के कारण सर्वाइकल स्पाइन में टूट-फूट हो जाती है, जिससे उसकी सामान्य कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। इसका प्रभाव केवल गर्दन तक ही सीमित नहीं रहता है, हाथ और पैर भी ठीक से काम नहीं कर पाते हैं। चलने, बैठने और सांस लेने में परेशानी होती है। समस्या गंभीर होने पर ब्लैडर और बॉउल पर भी नियंत्रण नहीं रहता है।

गर्दन से जुड़ी कुछ प्रमुख समस्याएं
सर्वाइकल पेन (Cervical pain) - गर्दन में दर्द होने को चिकित्सीय भाषा में सर्वाइकल पेन कहते हैं। गर्दन से होकर गुजरने वाले सर्वाइकल स्पाइन के जोड़ों और डिस्क में गड़बड़ी के कारण यह दर्द होता है। हड्डियों और कार्टिलेज में टूट-फूट, बढ़ती उम्र, या फिर गर्दन में चोट लग जाना, लिगामेंट्स कड़े हो जाना, शारीरिक सक्रियता की कमी, गर्दन को गलत स्थिति मे लंबे समय तक रखना भी इसके कारण हो सकते हैं। तेज दर्द के कारण रोज के काम करने में भी परेशानी आती है।
सर्वाइकल स्पॉन्डिाइटिस - उम्र बढ़ने व अन्य कई कारणों से रीढ़ की शक्ति कम हो जाती है। उसमें विकृतियां आने लगती हैं। रीढ़ ही शरीर के ऊपरी भाग का पूरा भार सहती है, स्पाइनल कॉर्ड की सुरक्षा करती है। रीढ़ और इसकी शॉक एब्जारबिंग (दबाव सहने वाली ) इंटरवर्टिबरल डिस्क की विकृति को स्पॉन्डिलाइटिस कहते हैं। जब यह समस्या सर्वाइकल स्पाइन से जुड़े जोड़ों में होती है तो उसे सर्वाइकल स्पॉन्डोलाइटिस कहते हैं। इस स्थिति में स्पाइनल कॉर्ड और नर्व रुट्स जो स्पाइन से निकलकर शरीर के बाकी भागों में जाते हैं, के बीच का जरुरी स्थान बहुत कम हो जाता है।
सर्वाइकल मायलोमैलेसिया - स्पाइनल कॉर्ड कम्प्रेस्ड हो जाती है, जिससे स्पाइनल कॉर्ड का वॉल्यूम कम हो जाता है। इस कारण पूरे शरीर में समस्या हो सकती है। दर्द, सांस लेने में परेशानी, मांसपेशियों में कमजोरी महसूस होना, तंत्रिका तंत्र की कार्यप्रणाली गड्बडाना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। जब असामान्य क्षतीग्रस्त ऊतक, सर्वाइकल (गर्दन) के सी3-सी5 क्षेत्र के बीच स्थित तंत्रिकाओं तक पहुंच जाते हैं तो रेसपिरेटरी पैरालिसिस हो सकता है, जो जानलेवा भी हो सकता है।
सर्वाइकल स्टेनोसिस - यह समस्या तब होती है, जब गर्दन के क्षेत्र की स्पाइन कैनाल संकरी हो जाती है, जिससे स्पाइनल कॉर्ड दब जाती है। डिस्क जो दो कशेरूकाओं के बाच कुशन या गद्दे का काम करती हैं, उनके सूखने से भी यह समस्या हो जाती है। इस कारण दो कशेरूकाओं के मध्य का स्थान सिकुड़ जाता है और डिस्क झटकों को सहने की क्षमता खो देती है। समस्या गंभीर होने पर ऑपरेशन जरूरी हो जाता है।
सर्वाइकल वर्टिगो - सर्वाइकल वार्टिगो, सर्वाइकल स्पाइन स ेसंबंधित समस्या है, जिसमें पीड़ित को लगता है कि या तो वो घूम रहा है या दुनिया घूम रही है। इस कारण का संतुलन बनाने और ध्यान केंद्रित करने में भी परेशानी हो सकती है। गर्दन का पॉस्चर ठीक नहीं रखना, गर्दन सो जुड़ी समस्ररयाएं या किसी चोट के कारण सिर और गर्दन का अलाइनमेंट बिगड़ जाना आदि कई कारणों से ऐसा हो सकता है। ध्यान न देने पर स्थिति गंभीर हो जाती है।
युवाओं में बढ़ रहा है खतरा
युवा और किशोर सर्वाइकल रीढ़ से जु़ड़ी समस्याओं के अधिक शिकार हो रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना हेै कि इसका प्रमुख कारण गलत पॉस्चर है, जिससे मांसपेशियों पर दबाव पड़ता है। लैपटॉप और मोबाइल फोन के बढ़ने इस्तेमाल ने समस्या को गंभीर बना दिया है। घंटों कम्पयुटर पर झुककर काम करने से गर्दन की मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है। शारीरिक साक्रियता की कमी और गलत खानपान भी इस समस्या का कारण बन सकता है। समय रहते उपचार न कराया जाए तो सर्वाइकल की समस्या गर्दन के अलावा शरीर के दूसरे हिस्सो में भी फैल जाती है।

कब जरुरी हो जाती है सर्जरी
गर्दन से संबंधित जिन समस्याओं में सर्जरी की जरुरत होती है, इनमें निम्न को शामिल किया जाता है।
ए पिंच्ड नर्व (सर्वाइकल रैडिक्युलोपैथी) - इस स्थिति में, गर्दन में मौजूद तंत्रिकाओं की रुट्स में से एक या अधिक पर अत्याधिक दबाव पड़ता है। साथ ही व्यक्ति का ब्लैडर पर नियंत्रण कम हो जाता है।
स्पाइनल कॉर्ड कम्प्रेशन (सर्वाइकल मायलोपैथी) - इस स्थित के कारण, स्पाइनल कॉर्ड दब जाती है या उत्तेजित हो जाती है। इसके कुछ सामान्य कारणों में सम्मिलित हैं ऑस्टियोआर्थराइटिस, स्कोलियोसिस या गर्दन में चोट लग जाना।
गर्दन की हड्डी टूट जाना (सर्वाइकल फ्रैक्चर) - यह तब होता है, जब गर्दन की एक या अधिक हड्डी में फ्रैक्चर होता है।
स्थिति की गंभीरता पर निर्भर करता है उपचार
गर्दन दर्द के लिए समय पर किया उपचार कई समस्याओं से बचा सकता है। उपचार का उद्देश्य दर्द व कड़ेपन से आराम देना, लक्षण गंभीर होने से रोकना व स्पाइनल विकृति को कम करना है।
दवाएं - दर्द, सूजन व अकड़न कम करने के लिए नॉन-स्टेरॉइड एंटी-इनफ्लैमेटरी ड्रग्स व मसल्स रिलेक्सेंट दी जाती है।
इंजेक्शन - जब दर्द अधिक होता है तब कार्टिकोस्टेरॉइड के इंजेक्शन दिए जाते हैं।
फिजिकल थेरेफी - फिजियोथेरेपी से दर्द में आराम मिलता है। मांसपेशियों व जोड़ो में मजबूत व लचीलापन आता है। फिजियोथेरेपिस्ट व्यक्ति विशेष की जरूरत के अनुसार खास व्यायाम भी बताते हैं।
सर्जरी
प्रमुख सर्जिकल विकल्पों में सम्मिलित हैं :
सर्वाइकल स्पाइन फ्युजन - इसमें गर्दन की दो कशेरूकाओं को जोड़कर एक कर दिया जाता है, ताकि वो हड्डी का एक स्थिर टुकड़ा बन जाए। इसे तब करते हैं, जब गर्दन का एक क्षेत्र अस्थिर होता है या जब प्रभावित क्षेत्र के मूवमेंट पर दर्द होता है। सर्वाइकल फ्रैक्चर जैसी स्थितियों में यह सर्जरी की जाती है।
एंटेरियर सर्वाइकल डिस्केक्टोमी एंड फ्युजन (एसीडीएफ) - पिंच्ड नर्व या स्पाइनल कॉर्ड कम्प्रेशन को ठीक करने के लिए यह सर्जरी की जाती है। सर्जरी द्वारा डिस्क या बोन स्पर्स जिनके कारण तंत्रिका तंत्र पर दबाव बना रहा हो, उन्हें निकाल दिया जाता है।
एंटेरियर सर्वाइकल कॉर्पेक्टोमी एंड फ्युजन (एसीसीएफ) - जब बोन स्पर्स को एसीडीएफ सर्जरी के द्वारा निकालना संभव न हो, तो इस सर्जरी को किया जाता है।
लेमिनेक्टॉमी - गर्दन पर चीरा लगाकर सर्जरी के द्वारा कशेरूका के पिछले हिस्से जिसे लेमिना कहते हैं, डिस्क, बोन स्पर्स य लिगामेंट्स को निकालकर दबाव कम करते हैं।
लैमिनोप्लास्टी - स्पाइनल कार्ड और संबंधित तंत्रिकाओं पर दबाव कम करने के लिए लैमिनेक्टॉमी के विकल्प के तौर पर इसका इस्तेमाल करते हैं।
आर्टिफिशियल डिस्क रिप्लेसमेंट (एडीआर) - इस तरह की सर्जरी से गर्दन की पिंच्ड नर्व का उपचार करते हैं। एडीआर के द्वारा खराब डिस्क को निकालकर आर्टिफिशियल इम्प्लांट लगाते हैं।
आधिकतर गर्दन के दर्द नियमित रूप से एक्सरसाइज करने और अपना पॉस्चर सही रखने से ठीक हो जाते हैं, लेकिन जब
- दर्द काफी बढ़ जाए।
- बिना आराम के दर्द लगातार कई दिन रहे।
- गर्दन से बांहों और पैरों तक फैल जाए।
- सिर दर्द, कमजोरी, हाथों और पैरों में सुन्नपन और झुनझुनी रहना।
- हाथ और पैर में कमजोरी महसूस होना।
- शरीर का संतुलन बनाने में दिक्कत और भारीपन।
- मोटर स्किल्स में कमी आ जाए।
- विभिन्न अंगों के बीच तालमेल बनाने में दिक्कत हो, ब्लैडर पर नियंत्रण न रहे।
इत्यादि दिक्कत होने पर तुरंत डॉक्टर को दिखाएं।
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