Ticker

6/recent/ticker-posts

बिना तार के रेगिस्तान से पहाड़ तक दौड़ेगा इंटरनेट, Starlink से Jio में ख़ौफ़?

एलन मस्क की स्टारलिंक (Starlink) को भारत में अपनी सेवाएं देने के लिए लाइसेंस जल्द मिल सकता है। टेलीकॉम मिनिस्टर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार 12 नवंबर को जानकारी दी है कि स्टारलिंक (Starlink) सिक्योरिटी से जुड़े सरकार के सभी जरूर नियम कायदों को पूरा करने की प्रक्रिया में है। टेलीकॉम मिनिस्टर ने कहा कि यह सरकार द्वारा निर्धारित एक प्रमुख शर्त है। उन्होंने कहा कि स्टारलिंक (Starlink) के लाइसेंस का एप्लीकेशन आगे बढ़ चुका है।

इससे पहले न्यूज़ वेबसाइट सनीकंट्रोल (Moneycontrol)  की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि स्टारलिंक (Starlink) ने दूर संचार विभाग यानी कि DOT (Department Of Telecommunication) के साथ हाल में हुई बैठकों में सरकार की शर्तों को पूरा करने पर सहमति जताई है। हालांकि इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि स्टारलिंक (Starlink) ने अभी तक दूर संचार विभाग के साथ औपचारिक रूप से अपना कंप्लायंस एग्रीमेंट साझा नहीं किया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टारलिंक (Starlink) भारत सरकार के डाटा लोकलाइजेशन और सिक्योरिटी स्टैंडर्ड्स को पूरा करने के लिए राजी हो गई है। ऐसे में माना जा रहा है कि एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक (Starlink) भारत में जल्द अपना सैटेलाइट इंटरनेट सेवा शुरू कर सकती है।

डाटा लोकलाइजेशन का मतलब यह है कि स्टारलिंक (Starlink) को भारतीय ग्राहकों की जानकारी भारत के अंदर ही स्टोर करनी होगी और जरूरत पड़ने पर इन यूजर से जुड़ी जानकारी कंपनी को भारत की सरकारी खुफिया एजेंसियों के साथ साझा करनी पड़ेगी।

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं को शुरू कर करने के लिए इन नियमों का पालन जरूरी होता है। इसके बाद ही आवेदन करने वाली कंपनी को भारत सरकार ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्युनिकेशन बाय सैटेलाइट सर्विसेस (Global Mobile Personal Communication by Satellite) यानी कि GMPCS लाइसेंस जारी करती है। भारत में सैटेलाइट इंटरनेट सर्विसेस शुरू करने के लिए यह लाइसेंस जरूरी होता है। इस लाइसेंस के मिलने के बाद ही किसी कंपनी को भारत सरकार टेस्टिंग के लिए स्पेक्ट्रम देती है। इसके बाद ही कोई कंपनी भारत में अपनी शुरुआती सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं शुरू कर सकती है।


स्टारलिंक की  सेटेलाइट इंटरनेट सर्विस क्या है

स्टारलिंक (Starlink) एलन मस्क की कंपनी स्पेस X (Space X) द्वारा दी जाने वाली एक सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस है। आमतौर पर देश में अभी तक जितनी भी कंपनियां इंटरनेट सेवाएं देती हैं, वो या तो जमीन के अंदर केबल बिछाकर या फिर मोबाइल टावरों के जरिए इंटरनेट ऑफर करती हैं जबकि स्टारलिंक(Starlink) अपने ग्राहकों को इंटरनेट सेवा मुहैया कराने के लिए धरती की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों के नेटवर्क का इस्तेमाल करती है। स्टारलिंक(Starlink) का मेन मकसद उन दूर दराज इलाकों में हाई स्पीड इंटरनेट देना है जहां पर ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध नहीं है। खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों और उन जगहों के जहां टावर लगाना काफी मुश्किल होता है। स्टारलिंक (Starlink) की इंटरनेट सर्विसेस सामान्य ब्रॉडबैंड की तरह काम नहीं करती है। इसमें मीलो लंबी केबल के भरोसे नहीं रहना पड़ता है। स्टारलिंक (Starlink) अंतरिक्ष से सीधे इंटरनेट सेवाएं देती है। इसकी वजह से दूर दराज के इलाकों तक हाई स्पीड इंटरनेट पहुंच जाता है। हालांकि अभी भी सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं चल रही हैं लेकिन सेवा देने वाली कंपनियां उन उपग्रहों का इस्तेमाल कर रही हैं जो पृथ्वी से बहुत दूर हैं। इस वजह से इंटरनेट की स्पीड स्लो रहती है। डाटा ट्रांसमिशन में देरी के चलते हाई स्पीड इंटरनेट मिलने में दिक्कत आती है। स्टारलिंक (Starlink) के उपग्रह धरती के बहुत करीब हैं इसलिए वो तेज रफ्तार से इंटरनेट बिना देरी किए मुहैया करा सकते हैं। स्टारलिंक(Starlink) की एक और खास बात यह है कि आप आसमान में भी हाई स्पीड इंटरनेट से जुड़े रह सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि ब्रॉडबैंड कंपनी डाटा भेजने के लिए फाइबर ऑप्टिक केबल के जरिए इंटरनेट सेवा देती है। शहरों और कस्बों में तो केवल के केबल के जरिए ही इंटरनेट पहुंचाना आसान है लेकिन दूर दराज के इलाकों में और पहाड़ी इलाकों में ऐसा करना बहुत मुश्किल हो जाता है और महंगा भी। यहीं पर स्टारलिंक (Starlink) काम में आता है।

स्टारलिंक (Starlink) ने अक्टूबर 2022 में भारत में इस लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। इंडिया टुडे की रिपोर्ट बताती है कि आगे की मंजूरी के लिए एलन मस्क की यह कंपनी इन-स्पेस(IN-SPACe) के साथ मिलकर काम कर रही है। इन-स्पेस (IN-SPACe) का पूरा नाम इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (Indian National  Space Promotion and Authorization Centre) है। यह स्पेस रेगुलेटर की तरह काम करता है यानी अगर कोई निजी कंपनी भारत में अंतरिक्ष से जुड़ा कोई प्रोजेक्ट शुरू करना चाहती है तो इन-स्पेस(IN-SPACe) से परमिशन लेना जरूरी होता है।

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट बताती है कि स्टारलिंक (Starlink) और एमाजॉन (Amazon) की सेटेलाईट से जुड़े प्रोजेक्ट कुईपर (Kuiper) को लाइसेंस देने से पहले और जानकारियां माँगी गई हैं। IN SPACE के चेयरमैन पवन कुमार गोइंका ने मनीकंट्रोल से इसकी पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि दोनों कंपनियां स्पेस रेगुलेटर द्वारा उठाए गए प्रश्नों का जवाब देने की प्रक्रिया में है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया है कि स्टार लिंक के भारत में अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं को लॉन्च करने में अब अगर कोई बड़ी बाधा है तो वह यह कि सरकार की तरफ से सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए मूल्य निर्धारण और स्पेक्ट्रम आवंटन नियम बनना है। इसके बारे में भी सरकार की तरफ से जल्द ही दिशा निर्देश आ सकते हैं।

हाल ही में समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में दूर संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि सरकार सैटेलाइट ब्रॉडबैंड के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी की जगह उसका आवंटन करेगी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने इस बात पर जोर दिया कि कोई भी देश सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी नहीं करता बल्कि आईटीयू के दिशा निर्देशों के अनुसार आवंटन का विकल्प चुनता है। भारत ने सैटेलाइट स्पेक्ट्रम को 2023 के अपने दूर संचार अधिनियम की अनुसूची के तहत शामिल किया है। इसके लिए सरकार को स्पेक्ट्रम आवंटन की जरूरत होती है। दूर संचार मंत्री ने बताया था कि टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी ट्राई इस स्पेक्ट्रम का दाम तय करेगी। इसके बाद सरकार के इस फैसले का एलन मस्क ने समर्थन किया था।

बिजनेस टुडे के पत्रकार डेनी डी क्रूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत सरकार की तरफ से स्पेक्ट्रम नीलामी की जगह आवंटन का फैसला अंतरराष्ट्रीय दूर संचार संघ यानी कि आईटीओ द्वारा निर्धारित वैश्विक मानकों के अनुरूप है।


क्या भारत के दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों को झटका लग सकता है

इस फैसले को मुकेश अंबानी और सुनील मित्तल की अगुवाई वाली भारत की दिग्गज टेलीकॉम कंपनियों jio और भारतीय एरटेल के लिए झटका माना जा रहा है। इन कंपनियों ने सैटेलाइट स्पेक्ट्रम की नीलामी की वकालत की है। कुछ समय पहले jio ने इस पूरे मामले में टेलीकॉम रेगुलेटर ट्राई को चिट्ठी भी लिखी थी। jio का मानना है कि इस तरह के स्पेक्ट्रम को नीलामी के जरिए दिया जाना चाहिए। jio कि तर्ज़ पर भारतीय एरटेल के चैयरमैन सुनील मित्तल ने भी स्पेक्ट्रम की नीलामी पर जोर दिया था। इस कंम्पनियों का कहना है कि उन्हों ने स्पेक्ट्रम को पाने के लिए काफी पैसा खर्ज किया है। ऐसे में अगर स्टारलिंक(Starlink) या एमाजॉन (Amazon) की कुईपर (Kuiper) जैसी कंम्पनियां अपनी सेवाएं शुरू करती हैं तो उन्हें झटका लग सकता है। जबकि सरकार की नई स्पेक्ट्रम आवंटन रणनीति स्टारलिंक जैसी अंतर्राष्ट्रिय कंम्पनियों को भारत में अपनी सैटेलाईट सेवाएं शुरू करने में काफी मदद दे सकती हैं क्योंकि कंपनी को कम पैसा खर्च करना पड़ सकता है।


By Anil Paal

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ